1857 के स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बाबू कुंवर

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बाबू कुंवर

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लेखक:- डॉ पवन कुमार सुरोलिया सम्पर्क सूत्र- 9829567063

भारतीय समाज का अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध असंतोष चरम सीमा पर था. अंग्रेजी सेना के भारतीय जवान भी अंग्रेजो के भेदभाव की नीति से असंतुष्ट थे. यह असंतोष सन 1857 में अंग्रेजो के खिलाफ खुले विद्रोह के रूप में सामने आया.क्रूर ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए सभी वर्गों के लोगो ने संगठित रूप से कार्य किया. सन 1857 का यह सशस्त्र – संग्राम स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम कहलाता है. नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और बेगम हजरत महल जैसे शूरवीरो ने अपने – अपने क्षेत्रो में अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध किया. बिहार में दानापुर के क्रांतकारियो ने भी 25 जुलाई सन 1857 को विद्रोह कर दिया और आरा पर अधिकार प्राप्त कर लिया. इन क्रांतकारियों का नेतृत्व कर रहे थे वीर कुँवर सिंह. (13 नवंबर 1777 – 26 अप्रैल 1858) सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक थे। अन्याय विरोधी व स्वतंत्रता प्रेमी कुशल सेना नायक थे। इनको 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है। कुँवर सिंह बिहार राज्य में स्थित जगदीशपुर के जमींदार थे. कुंवर सिंह का जन्म सन 1777 में बिहार के भोजपुर जिले में जगदीशपुर गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह था.इनके पूर्वज मालवा के प्रसिद्ध शासक महाराजा भोज के वंशज थे. कुँवर सिंह के पास ब?ी जागीर थी. किन्तु उनकी जागीर ईस्ट इंडिया कम्पनी की गलत नीतियों के कारण छीन गयी थी. प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय कुँवर सिंह की उम्र 80 वर्ष की थी. वृद्धावस्था में भी उनमे अपूर्व साहस, बल और पराक्रम था. उन्होंने देश को पराधीनता से मुक्त कराने के लिए दृढ संकल्प के साथ संघर्ष किया. अंग्रेजो की तुलना में कुँवर सिंह के पास साधन सीमित थे परन्तु वे निराश नहीं हुए. उन्होंने क्रांतकारियों को संगठित किया. अपने साधनों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने छापामार युद्ध की नीति अपनाई और अंग्रेजो को बार – बार हराया. उन्होंने अपनी युद्ध नीति से अंग्रेजो के जन – धन को बहुत हानि पहुंचाई. कुँवर सिंह ने लिए. अंग्रेज सैनिक जान बचाकर भाग ख?े हुए. यह कुँवर सिंह की योजनाबद्ध रणनीति का परिणाम था.पराजय के इस समाचार से अंग्रेज बहुत चिंतित हुए. इस बार अंग्रेजो ने विचार किया कि कुँवर सिंह की का अंत तक पीछा करके उसे समाप्त कर दिया जाय. पूरे दल बल के साथ अंग्रेजी सैनिको ने पुन: कुँवर सिंह तथा उनके सैनिको पर आक्रमण कर दिया.युद्ध प्रारंभ होने के कुछ समय बाद ही कुँवर सिंह ने अपनी रणनीति में परिवर्तन किया और उनके सैनिक कई दलों में बँटकर अलग अलग दिशाओ में भागे.

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