शनि और राहु का एक दूसरे से संबंध-१

शनि और राहु का एक दूसरे से संबंध-१

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लेखक:- डॉ पवन कुमार सुरोलिया सम्पर्क सूत्र-9829567063

जन्मकुंडली में सैकड़ों तरह के योग होते हैं उनमें से एक योग पिशाच योग कहलाता है पिशाच योग राहु द्वारा निर्मित योगों में यह नीच योग है।शनि-राहु की युति से बनता है पिशाच योग जिस व्यक्ति की जन्मपत्री में होता है वह प्रेत बाधा का शिकार आसानी से हो जाता है। ‘धूर्त योग’, जिसकी कुंडली में बनता है ये योग, धन की नहीं रहती है कमीइस योग को मांदी योग भी बताया गया है. माना जाता है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में ये योग होता है वो अपने राज को छिपाकर रखता है. ऐसे लोग क्या करते हैं कोई नहीं जान पाता है. ऐसे लोग आपार धन कमाते हैं. ऐसे लोग बेहद शार्प माइंड होते हैं. अपने मकसद में सफलता पाने के लिए ये कुछ करने को तैयार रहते हैं. ये गलत कामों से भी धन कमाते हैं.इस युति से जातक चिंतित और निर्बल महसूस करता है इस योग की अशुभता से बचने के लिए भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. इससे दोष दूर होता है.
्रह्यह्लह्म्शद्यशद्द4 : शनि को एक क्रूर ग्रह माना गया है. वहीं राहु को एक मायावी ग्रह के रूप में देखा जाता है. जब ये आपस में युति बनाते हैं तो क्या समस्याएं आती हैइनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है ।इनकी मानसिक स्थिति कमज़ोर रहती है, ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं.इनके मन में निराशात्मक विचारों का आगमन होता रहता है।कभी कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं।शनि व राहु इन दोनों ग्रहों को वैदिक ज्योतिष में पाप ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। जब यह दो ग्रह आपस में संबंध बनाते हैं तो पिशाच नामक योग बनता है। अब प्रश्न यह उठता है कि किस प्रकार से शनि व राहु संबंध बनाएं तो यह योग बनता है। उससे पूर्व यह जानना आवश्यक है कि आखिर शनि व राहु से ही क्यों पिशाच योग बनता है। इस योग का क्या अर्थ है। इसके लिए शनि व राहु को समझना होगा। शनि व राहु रात्रि बली होते हैं। शनि का वर्ण श्याम है। शनि अंधेरे का ग्रह है। राहु एक माया अर्थात जादू है। जब भी शनि और राहु के बीच संबंध बनता है तो नकारात्मक शक्ति का सृजन होता है। जिसे ज्योतिष में पिशाच योग की संज्ञा दी गई है। शनि व राहु एक साथ युति कर किसी भी भाव में स्थित हों। एक दूसरे को परस्पर देखते हों। शनि की राहु या राहु की शनि पर दृष्टि हो। गोचर वश जब शनि जन्म के राहु या राहु जन्म के शनि पर से गोचर करता हो। इन चार प्रकार के शनि व राहु के मध्य संबंध बनने पर पिशाच योग बनता है।प्रेत, श्राप, योग यानि ऐसी घटना जिसे अचनचेत घटना कहा जाता है .अचानक कुछ ऐसा हो जाना जिसके बारे में दूर-दूर तक अंदेशा भी न हो और भारी नुक्सान हो जाए। इस योग के कारण एक के बाद एक मुसीबत बढ़ती जाती है अगर शनि या राहू में से किसी भी ग्रह की दशा चल रही हो या आयुकाल चल रहा हो यानी 7 से 12 या 36 से लेकर 47 साल तक का समय हो तो मुसीबतों का दौर थमता नहीं है।जन जातकों की कुंडली में राहु और शनि का योग हो, उसे भी बेहद खराब माना गया है. कहा जाता है कि ऐसे लोगों की आर्थिक समस्याएं बढ़ जाती है तथा किसी गंभीर रोग से ऐसे लोग ग्रसित हो सकते हैं.शनि-राहु के कारण अचानक हो सकता है नुकसान, जानिए खास बातें ,यदि कुंडली के किसी भी भाव में शनि-राहु या शनि-केतु की युति है तो प्रेत श्राप योग बनता ह शनि-राहु के कारण अचानक हो सकता है नुकसान, जानिए खास बातें ,यदि कुंडली के किसी भी भाव में शनि-राहु या शनि-केतु की युति है तो प्रेत श्राप योग बनता हशनि-राहु या शनि-केतु की युति संबंधित भाव के फल को पूरी तरह बिगा? देती है। साथ ही, व्यक्ति को धन, संतान, जीवन साथी के संबंध में भी परेशानियों का सामना। 1. शनि-राहु की युति हो तो कभी-कभी अचानक ही भारी नुकसान हो सकता है। ऐसी घटना भी घट सकती है, जिसका दूर-दूर तक कोई अंदेशा न हो।2. इस योग की वजह से किसी भी ग्रह की दशा में या उम्र 7 से 12 या 36 से लेकर 47 वर्ष तक के समय में समस्याओं का दौर चलता रहता है।3. कुंडली में यदि शनि-राहु की दृष्टि किसी शुभ ग्रह पड़ जाए तो उस ग्रह के सभी शुभ फल खत्म हो सकते हैं।4. इसे शनि ग्रह से निर्मित पितृ दोष भी कहा जाता है। इस दोष का निवारण भी घर में संतान के जन्म लेते ही किसी विशेषज्ञ ब्राह्मण से करवा लेना चाहिए। अन्यथा मकान संबंधी परेशानियां शुरू हो सकती हैं। व्यापार बंद हो सकता है। पिता पर कर्जा बढ़ सकता है।5. यदि व्यक्ति और उसकी संतान की कुंडली में प्रेत श्राप योग बन रहा है तो नौकरी में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।6. जिन लोगों की कुंडली में ये योग होता है,शनि राहु,गुरु केतु की युति जहाँ पूर्वजन्म के आशीर्वाद को दर्शाती है वही शनि राहु पूर्व श्राप की ओर संकेत करती है । कुंडली में शनि राहु कारक न होकर जलीय या अग्नि राशि में हो तो पीड़ा और बढा देती है। शनि बुढ़ापे के कारक हैं तो राहु गम्भीर वायु रोग के कारक हैं। दोनों ही वायु तत्व व ठंडे ग्रह हैं।। घुटने मुड़ना लकवा मारना पांव सिकुड़ जाना दमा इत्यादि बीमारी बुढ़ापे में घेर लेती है। शनि सिमा के अंदर रहना पसंद करते हैं व राहु सिमा के बाहर रहकर खुश होते हैं। यानी न घर का न घाट का कर्म में छल करना ,टैक्स चोरी करना,बिना मेहनत छल करके बीच का पैसा खाना 2नम्बर का काम करने बालो को ये युक्ति अच्छा खासा पॉजिटिव फल दे जाती है । पर जो हक हलाल की खाने की चाह रखते हैं उन्हें ये कर्म में टिकने नही देती।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पूरे परिवार पर एक साथ विपत्ति आने के सबसे ब?ा कारण है शनि और राहु का एक दूसरे से संबंध बनाना। अमूमन देखा गया है की पारिवारिक विपत्ति आने के समय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूरे परिवार पर एक साथ विपत्ति आने के सबसे ब?ा कारण है शनि और राहु का एक दूसरे से संबंध बनाना। अमूमन देखा गया है की पारिवारिक विपत्ति आने के समय अनेक सदस्यों पर एक साथ सा?ेसाती या ढैया या शनि की महादशा के राहु का अंतर या राहु की महादशा में शनि का अंतर या अनेक सदस्यों की कुंडली में शनि का नीच होकर त्रिक भाव में बैठना कारण रहते हैं।
ज्योतिष के कालपुरुष सिद्धांतानुसार शनि को पितृ, कर्म, व्यवसाय, न्याय, पितापक्ष, ब?े भाई-बहन, लाभ, मोक्ष, पी?ा, व्याधि, दुर्घटना, दुर्भाग्य और मृत्यु का कारण माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि का बिग?ना पितृदोष को जन्म देता है। कालपुरुष कुंडली में शनि दशम व एकादश भाव पर अपना स्वामित्व रखता है। शनि से व्यक्ति का पितापक्ष, प्रॉ?ैशन, न्याय परिक्रिया, कोर्ट केस, पितृपक्ष आदि देखे जाते हैं। जब कभी किसी परिवार के अनेक सदस्यों की कुंडली में शनि की राहु से युति होती है या शनि का राहु से षडाष्टक संबंध बनता है तब पूरे परिवार पर विपत्ति आती है। शनि-राहु संबंध के बीच मंगल के आने से पूरा परिवार आगजनी या स?क दुर्घटना का शिकार होता है। इस संबंध में शुक्र के आने से परिवार को दहेज उत्पी?न या झूठे मुकदमे झेलने प?ते हैं। इस संबंध में केतू के आने से परिवार को जेल होती है। इसी संबंध में चंद्रमा के आने से पारिवारिक संपत्ति के विवाद होते हैं तथा सूर्य के आने से सरकारी विभागों के छापे प?ते हैं व आर्थिक दंड मिलता है।
शुभ ग्रह के समय में भी मुसीबतें आती है
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के श्रापित दोष अशुभ माना गया है. श्रापित दोष होने पर जीवन में बुरा संकट झेलना पड़ता है. इस दोष का असर करियर, रोजगार, वैवाहिक जीवन और संतान पर पड़ता है. कुंडली में श्रापित दोष कैसे बनता है, जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है और इसे दूर करने के लिए क्या करना चाहिए, इसे जानते हैं.
श्रापित दोष का प्रभाव

कुंडली का श्रापित दोष अशुभ और खतरनाक माना जाता है. इस दोष के अशुभ प्रभाव से करियर की तरक्की में कई प्रकार की बाधाएं आती हैं. साथ ही शादीशुदा जिंदगी में पर्टनर के साथ बात बात पर नोकझोंक होती रहती है. अगर बिजनेस में नुकसान हो रहा है तो इसका एक कारण श्रापित दोष हो सकता है. इसके अलावा पारिवारिक क्लेश का कारण भी श्रापित दोष हो सकता है.
कैसे बनता है श्रापित दोष

कुंडली के किसी भाव में शनि-राहु के संयोग से श्रापित दोष बनता है. इस दोष के प्रभाव से इंसान की जिंदगी में बहुत प्रकार की मुश्किलें आती हैं. पिछले जन्म के बुरे कर्मों के कारण यह दोष बनता है. ऐसे में अगर इस दोष से छुटकारा पाने के लिए कोई उपाय नहीं किए जाते हैं तो यह पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहता है. ज्योतिष शोध के अनुसार कई बार ऐसा भी होता है किसी शुभ या योगकारी ग्रह की दशा काल हो और राहू, शनि युति रूपी प्रेत श्राप योग की दृष्टि का दुष्प्रभाव उस ग्रह पर हो जाए तो उस शुभ ग्रह के समय में भी मुसीबतें आती हैं जिस पर अधिकतर ज्योतिष गण ध्यान नहीं दे पाते पूर्व जन्म के दोषों में इसे शनि ग्रह से निर्मित पितृ दोष कहा जाता है इस दोष का निवारण भी घर में सन्तान के जन्म लेते ही ब्राह्मण की सहायता से करवा लेना चाहिए अन्यथा मकान सम्बन्धी परेशानियाँ शुरू हो जाती है , प्रापर्टी बिकनी शुरू हो जाती है। कारखाने बंद हो जाते हैं। पिता पर कर्जा चढ़ना शुरू हो जाता है। नौकरी पेशा हो कारोबारी संतान के प्रेत श्राप योग के कारण पिता का काम बंद होने के कगार पर पहुंच जाता है। ऐसे योग वाले के घर में निशानी होती है की जगह-जगह दरारें प?ना। सफाई के बावजूद भी गंदी बदबू आते रहना। घर में से जहरीले जीव जन्तु निलकना बिच्छू – सांप आदि।पितरों का शनि-राहु-केतु से क्या संबंध? जरूर करें ये 5 उपाय
पितरों का सम्बन्ध हमारे जन्मों से, संस्कारों से और भावनाओं से होता है. शनि का सम्बन्ध हमारे पूर्व जन्म के कर्मों और हमारे पितरों की स्थिति से होता है. राहु का सम्बन्ध हमारे दायित्व और ऋणों से होता है. केतु का सम्बन्ध हमारे पितरों और उनके मुक्ति मोक्ष से होता है. इस प्रकार शनि राहु और केतु से हम अपने दायित्व और अपने पितरों की स्थिति जान सकते हैंानि या सूर्य का सम्बन्ध राहु से हो तो पितरों का दायित्व बाकी रहता है

  • उनकी तृप्ति या मुक्ति नहीं हो पाती ,इस दशा को पितृ दोष कहा जाता है

राहु शनि की युति होने पर ऐसे फल मिलते हैंयदि लग्न में शनि व राहु की युति हो तो ऐसे व्यक्ति के ऊपर तांत्रिक क्रियाओं का अधिक प्रभाव रहता है। व्यक्ति हमेशा चिंतित रहता है। नकारात्मक विचार आते हैं। कोई न कोई रोग निरंतर बना रहता है। द्वितीय भाव में शनि व राहु की युति हो तो व्यक्ति के घर वाले उसके शत्रु रहते हैं। हर कार्य में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। तृतीय भाव में शनि व राहु की युति होने पर व्यक्ति भ्रमित रहता है। संतान सुख नहीं प्राप्त होता है। शनि राहु के एक साथ होने पर जीवन उथल-पुथल से भरा होता है
चतुर्थ भाव में शनि व राहु की युति होने पर माता का पूर्ण सुख नहीं मिल पाता है। आर्थिक नुकसान होता है। पंचम भाव में युति हो तो ऐसे व्यक्तियों की शिक्षा कठिन स्थिति में पूर्ण होती है। षष्ठ भाव में युति हो तो ऐसे व्यक्ति के शत्रु अधिक होते हैं। सप्तम भाव में युति हो तो व्यक्ति को मित्रों व साझेदारों से धोखा मिलता है। अष्टम भाव में युति हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह की स्थितियाँ बनी रहती हैं।
नवम भाव में युति हो तो ऐसे व्यक्ति के भाग्य में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। दशम भाव में युति हो तो कारोबार में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। एकादश भाव में युति हो तो जुए, सट्टे द्वारा धन की प्राप्ति होती है। द्वादश भाव में युति हो तो व्यक्ति के अनैतिक संबंध बनने की अधिक संभावना रहती है। उनके घर में जगह-जगह दरारें दिखाई देती हैं। साफ-सफाई के बावजूद सफाई दिखाई नहीं देती है।7. इस योग के प्रभाव से घर में सांप-बिच्छू भी निकलते रहते हैं।8. सप्तम भाव ये योग बनने पर व्यक्ति का वैवाहिक जीवन परेशानियों से भरा रहता है।9.अष्टम भाव में ये योग बन रहा हो तो व्यक्ति पर नकारात्मक शक्तियां हावी हो सकती है।10. नवम भाव में शनि-राहु का ये योग हो तो व्यक्ति भाग्य का साथ प्राप्त नहीं कर पाता है।11. यदि ये योग कुंडली के दशम भाव में बन रहा है तो चलता हुआ व्यापार बंद हो सकता है।12. एकादश भाव में ये योग बन रहा हो तो लगातार आने वाली मुसीबतों से इंसान हार जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में शनि और राहु को बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रह माना गया है. शनि को कर्मफलदाता कहा गया है. यनि शनि एक ऐसा ग्रह है जो मनुष्य को उसके कर्मों के आधार पर फल प्रदान करता है. इसीलिए इसे कर्मफलदाता, दंडाधिकारी भी कहा जाता है.जातक के जीवन में कई दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं. दरअसल, शनि को न्याय का ग्रह भी माना गया है. ऐसी मान्यता है कि यह बुरे के साथ बुरा और अच्छे के साथ अच्छा करते हैं. वहीं राहु के बारे में ऐसा माना जाता है कि ये जीवन में अचानक होने वाली घटना का कारक है.शनि की प्रिय राशियां
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं. वहीं तुला राशि में शनि उच्च के माने गए हैं जबकि मेष राशि शनि की नीच राशि है. तुला, मकर और कुंभ राशि शनि की प्रिय राशियां मानी गई हैं. यहा पर बैठे शनि अशुभ फल प्रदान नहीं करते हैंज्योतिषशास्त्र में शनि को न्याय का देवता बताया गया है। जो लोग अच्छे काम करते है, शनिदेव उनका अच्छा करते हैं और जो बुरा करते हैं, उन्हें सजा भी देते हैं। कुंडली में शनि देव का सही स्थान पर होना जरूरी है। अन्य ग्रहों की तरह शनि देव भी समय-समय पर स्थान बदलते रहते हैं जिन लोगों की कुंडली में शनि और राहु एक ही स्थान पर होते हैं, उनके लिए वह समय बहुत बुरा होता है। बीमारियों के साथ ही आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसी तरह शनि के साथ चंद्रमा की युति विषयोग बनाती है। जिन लोगों की कुंडली में ऐसा होता है, वे मानसिक तनाव का शिकार होते हैं। सूर्य तथा शनि का योग भी शुभ नहीं माना जाता है। जिस जातक की कुंडली में यह योग बनता है उसे मेहनत का फल नहीं मिलता।राहु ग्रह का स्वामी कौन है?
राहु को किसी भी राशि का स्वामी नहीं माना गया है, लेकिन माना जाता है कि मिथुन राशि में राहु उच्च का हो जाता है. इसके साथ ही जब राहु धनु राशि में आता है तो ये नीच का माना जाता है. राहु को आद्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्र का स्वामी माना गया है.
इन उपायों को करने से लाभ की प्राप्ति होगीशनि स्तोत्र का पाठ करें और अमावस्या के दिन जब सूर्य ढल रहा हो उस समय बहते पानी में नारियल प्रवाहित करें
शनि व राहु के हवनात्मक जप करें
दुर्गा सप्तशती का विधि पूर्वक पाठ व दशांश करें
संकटमोचन हनुमाष्टक व सुंदरकांड का पाठ नितदिन करेंकाला धतूरा घर के समीप लगा ले रोजाना शिवलिंग पर उसके फूल फल च?ाए तो इस युक्ति के नेगेटिव फल लगभग निर्मूल ही माने। चुकी काला धतूरा शनिदेव के अंतर्गत आता है। नशीला होने के कारण राहु विद्यमान है। नेगेटिव ऊर्जा व तन्त्र का असर कम होता हशनि के बिग?ने से घर में जीवन कलहपूर्ण बन जाता है। भाइयों में झग?े और विवाद के कारण बंटवारे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और संयुक्त व्यापार तथा परिवार खंडित हो जाता है। इससे सामाजिक प्रतिष्ठा भी धूमिल होती है। परिवार का संचित धन सदस्यों के स्वास्थ्य पर भी खर्च हो जाता है। एक ही परिवार के विभिन्न सदस्यों के सा?ेसाती या महादशा या अंतरदशा से प्रभावित होने की स्थिति में उन पर समान रूप से दुष्प्रभाव प?ते हैं। शनि सा?ेसाती, ढैया, महा दशा या अंतर दशा में अनिष्ट या प्रतिकूल प्रभाव व अनिष्ट प्रभाव को दूर करने के लिए बिना गुण का बैंगन बहुत कारगर सिद्ध होता है। कई शास्त्रों में बैंगन को बिना गुण के बताया है परंतु वैज्ञानिक आधार पर इसमें सर्वाधिक मात्रा में लोहा पाया जाता है। इसी कारण बैंगन पर शनि व राहु दोनों आधिपत्य रखते हैं। बैंगन के छोटे-छोटे उपायों से कुछ हद तक समस्याओं से निजात पाई जा सकती है। आइए जानते हैं बैंगन कैसे दे सकता है शनि बाधा से मुक्ति।
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