अपनी बेटियों को बचाओं-देवतास्वरूप भाई परमानंद

अपनी बेटियों को बचाओं-देवतास्वरूप भाई परमानंद

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लेखक परिचयः- भाई परमानंद हिन्दू महासभा के राष्ट््रीय अध्यक्ष रहे हैं ! तथा आपको अंग्रेजों ने फासी की सजा स्वतंत्रा संग्राम में भाग लेने के कारण सुना दी थी परंतु हिन्दू महा सभा के नेता मदन मोहन मालवीय ने वकालत की जिसके परिणामस्वरूप फांसी की सजा से आजीवन काला पानी सजा सुनाई गई हिन…्दू महा …सभा के नेता वीर सांवरकर, आशुतोष लाहिडी, भाई हृदय राम, आदि के साथ काली पानी की सजा भोगी ! आपने हिन्दूस्तान ही नहीं अपितु पूरे विश्व में भ्रमण कर आर्यो की श्रेष्ठता व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लडाई जारी रखी आपने केन्द्रीय एसम्बली में आजादी से पहले अम्बाला सीट सें चुनाव जीत कर पहॅंचे ! आपने पूरे देश में घूम कर पाकिस्तान के खिलाफ और अखण्ड भारत बना रहें इसके लिए सर्वस्व भारत माता को अर्पण कर दिया परन्तु दुर्भाग्य गांधी नेहरू पटेल की कांग्रेस व जिन्ना की मुस्लिम लीेग तथा अंग्रेजों ने इस भारत माता के टुकडे कर पाकिस्तान का निर्माण कर दिया जिससे भाई परमानंद को अत्यंत दुख हुआ तथा ये कहते हुए प्रांण त्याग दिये जिस हिन्दू जाति के लिए मेने सब कुछ भारत माता को अर्पण कर दिया अब जब पाकिस्तान बन गया तो मैं जिन्दा रह कर भी क्या करूंगा और अपने प्रांण त्याग दियें -प्रधान संपादक

भाईजी अपने समय में हो रही हिन्दू कन्याओं की दुर्दषा से चिन्तित थें वे समय-समय पर समाज को कन्याओं के प्रति सजग करते थे। वे कन्याओं में संस्कार के प्रबल पक्षधर थे । एक साप्ताहिक लेख में उनके द्वार लिखे गए लेख का भाव यही है।‘‘ यों लोग अनुभव नहीं करते ,किन्तु जो देखने की आँखे रखते है वे देख रहे हैं कि हिन्दू इस समय संकट काल में हैं। कुछ समय पूर्व भी एक युग ऐसा ही था तब भी हिन्दुओं का अपनी रक्षा की चिन्ता हुई । उस समय पं.काषीनाथ नाम एक समझदार ब्राहमण था । उसी ने ने संस्कृत के एक ष्लोक में धर्मरक्षा के नाम पर बताया की आठ वर्बा की कन्या गौरी होती है, नौ वर्बा की रोहिणी दस वर्बा की उर्मिला और इससे ऊपर के बिना विवाह के रहे , उनके माता-पिता और अन्य समबन्धी नरक में जाते हैं। यो तो यह ष्लोक मर्हिर्बा मनु और दूसरे षास्त्रकारों की षिक्षा के सर्वथा विरूद्ध था, किन्तु कन्याओं की रक्षा के लिए इसको समाज में प्रचलित करके बाल विवाह उचित ठहराना आवष्यक हो गया । कारण स्पबठ था । उस समय कन्या की आयु बड़ी हो जाने पर बड़ा भय यह था कि यदि कुमारी कन्या को कोई बलपूर्वक पकड़ कर ले जाता तो उस समय के विदेषी राज्य के कानून को तोड़ना न समझा जाता था । इसके मूल में यह भाव पाया जाता था कि जो कन्या कुमारी है वह किसी की सम्पŸिा नहीं होती, इसलिए उसे जो चाहे अपने कब्जे में ले सकता है। इस कानून से हिन्दू समाज को बचाने केे लिए यह आवष्यक था कि कन्याओं को छोटी आयु में विवाह दिया जाए जिससे उन पर कोई अन्य हाथ न डाल सके । ‘आज उस प्रकार का भय नहीं है और न कोई कानून ऐसा है जो ऐसी जबर्दस्ती की आज्ञा न दे । किन्तु इनके मुकाबले पर दूसरी ऐसी षक्तियाँ काम कर रही हैं जो कन्याओं के लिए कम खतरनाक नहीं है। हम इन षक्तियों का अच्छी तरह देख नहीं सकते। इसलिए इनको समझने के लिए एक दृबटान्त सामने रखना उचित प्रतीत होता है। कहते हैं-एक समय हवा और सूर्य में इस बात पर विवाद हुआ कि दोनों में अधिक बलवान कौन हैं? हवा अपनी षक्ति पर भरोसा रखती थी, सूर्य अपनी षक्ति पर । निष्चय हुआ कि सामने जो यात्री जा रहा है उस समय दोनों अपनी-अपनी षक्ति का परीक्षण करें । पहले हवा मैदान में निकली । उसने बड़े जोर से चलना आरम्भ किया । थोड़ी देर में उसका रूप आँधी जैसा हो गया । जितने जोर से वह चलती उतनी तेजी से यात्री अपने कपडे़ सम्भालता जाता । हवा इस काम में असफल रही । अब सूर्य का नम्बर आया । उसने मैदान में निकलते हीं यात्री पर अपनी नरम-नरम किरणें डालना आरम्भ किया । थोड़ी देर में वह अधिक गर्म और तेज हो गई । यात्री पर गरमी का इतना प्रभाव हुआ कि वह कपड़े उतारने लगा । अन्त में वह नंगा हो गया । उन किरणों की सहायता से जो प्रारंभ में यात्री को अच्छी मालूम दें, सूर्य ने हवा को परास्त कर दिया । इस युग में जो षक्तियां काम कर रहे हैं वह उन किरणो की तरह हम सब पर डाली जा रही हैं। आँधी के समय में हिन्दुओं ने अपने धार्मिक कपड़ो को बड़े जोर के साथ पकड़ा ओर अपने धर्म को बचा लिया । किरणों के प्रभाव में होकर अब यूँ तो सभी अपने धार्मिक विचारों को एक-एक करके छोड़ रहे है। किन्तु क्योंकि कन्याओं का हृदय अधिक कोमल होता है, इसलिए इन किरणों की गर्मी का प्रभाव उन पर अधिक हो गया है। इस बडे़ संकट से पं. काषीनाथ ने वह ष्लोक बनाकर उŸारी भारत में हिन्दूओं की कन्याओं कि रक्षा की । इन किरणों के प्रभाव से उसी प्रकार का भय उत्पन्न हो रहा है । आज इसी से हमें अपनी कन्याओं को बचाने की आवष्यकता है।

‘‘ यह किरणें हमारी कन्याओं पर किस प्रकार डाली जा रही हैं? इनमें से एक षक्ति थियेटर और सिनेमा के खेल हैं, जो कन्या जरा समझदार होकर इन खेलोें को देखने जाती हैं वह उस विबौले प्रभाव से बच नहीं सकती, जो इन खेलो द्वारा डाला जाता हैं । यह ठीक है कि इस प्रकार के सिनेमा और थियेटर यूरोप के देषांे मे पाए जाते , उनके हमारे समाज की अवस्था मे बड़ा भारी अन्तर है। जिस वस्तु के प्रयोग के प्रयोग से उन्हे हानी होने का इतना भय नही, वह हमारी अवस्था में हमारी ‘‘कन्याओं के लिए बहुत बुरा प्रभाव उत्पन्न कर रहा है ।‘‘ इस बड़े भय दूसरा बड़ा साधन कन्याओं के कालिज हैं । इन कालिजों की षिक्षा और कन्याओं की पढ़ाई हैं इन कालिजो की षिक्षा और कन्याओं की पढ़ाई षास्त्रों की षिक्षा के सर्वथा विरूद्ध है। आयुर्र्वेद है। आयुर्वेद-षास्त्र इस बात की आज्ञा देता हे। कि कन्या 16 वर्बा की आयु मे युवा हो जाती है, जबकि लड़का 25 वर्बा ूूूमे युवा होता है। इसलिए लड़का जितने काल तक षिक्षा प्राप्त कर सकता है, उतने समय तक कन्या के लिए षिक्षा में समय व्यय करना सम्भव नहीं हेंै । संसार मे सबसे प्रथम महर्बिा मनु ने सामाजिक नियम और कानूनो की नींव डाली । उन्होनें कन्या के विवाह की आयु 16 तथा लड़के के विवाह की आयु 25 वर्बा नियत की । जिन लोेगो को संसार का अनुभव हे, वे अच्छी तरह जानते हें कि दोनो अवस्थओं में लड़के और लड़की को बिना विवाह रखना भय से मुकत नहीं रहता इसलिए कन्याएं 16 वर्बा की आयु तक विवाह न करते हुए षिक्षा प्राप्त कर सकती हें किन्तु 16 के बाद उनेके लिए षिक्षा जारी क कन्याओं की षिक्षा प्रणाली, लड़को की षिक्षा-प्रणाली से भिन्न होना सर्वथा आवष्यक है। व ऐसी होनी चाहिए कि स्कूल की पढ़ाई की समाप्ति तक उन्हेंवसब विबाय सिखा दिए जाएँ जिनका जानना कन्याओं के लिए आवष्यक है ं प्राकृतिक साीमा से बढ़ कर कन्याआंे पर षिक्षा का भार डालना, एक तो उनके षरीर को इतना निर्बल कर देता है कि वह सन्तान उत्पन्न करनेऔर उसका नियम-पूर्वक पालन करने के योग्य नही रहती। दूसरे ,सीमा से अधिक स्वच्छन्द जीवन व्यतीत करने से उन्हें इस प्रकार की स्वच्छन्दता की आदत पड़ जाती है जो कन्याओं के लिए बहुत बुरे परिणाम उत्पन्ना करती है। साधारणतया यह समझा जाता है कि जितने कालिज बनाए गए हैं उन्हें एक प्रकार की दुकानदारी बनाकर कन्याओं के मातपिता से फीसों के बहाने ं बहुतेरा रूपया ठग लिया जाता है। इन कालिजो को चलने वालों को को जरा ख्याल नहीं कि इन कन्याओं का क्या बनेगा और इस नई पष्चिमी षिक्षा का क्या प्रभाव हो रहो हे? ये तो एक प्रकार से हिन्दू समाज को नबट करने वाले षिक्षणायल है। ‘‘ इस षिक्षा के फल पर विचार करना आवष्यक हैे ंकिसी देनिक पत्र में विवाह के विज्ञापन देखिए। इस मे आधे ऐसी कन्याओं के सम्बन्ध में होते है जो बी.ए. बी.टी. आदि पास है और जिनकी प्रषंसा में प्रायः यह लिखा जाता यह बहुत खूबसूरत है ,नाजुक बदन और पतली कमर रखती है। इसका अर्थ यह है-कि जिन कन्याओ ने यह षिक्षा प्राप्त कर ली हे उनके लिए अनेक लालच देकर वर तलाष करने की आवष्यकता होती हे ं। इन विज्ञापनो को देखकर मेर मन मे महान् घृणा उत्पन्न होती हे, किन्तु क्योंकि इस षिक्षा की प्रथाबहुत बढ़ रही है, इसलिए इसके अतिरिक्त कोई उपाय नही नहीं कि इन कालिजों को बन्द कर दिया जाए ं‘‘ दुकानदारी चलाने वाले कालिजों का छोेड ़दिजिए । मेरे सामने उस कालिज की कन्याओं का उदारहण हे जिसको एक धार्मिक संस्था बता कर आर्यसमाज के दान से चालाया जा रहा है । हमें बताया जाता है कि इस कालिज के छात्रावास में सन्ध्या के षब्दो पर मखौल किया । वहाँ कन्याओं को ऐसा रहन-सहन सिखाया जाता है कि किसी अमीर पति के घर जाने के अतिरिक्त वे कहीं निर्वाह न कर सकें । धर्म-षिक्षा का तो उसमें नाम ही नही है। उस कालिज की प्रिन्सीपल को डेढ सो रूपया मासिक उपवेतन देकर अवैतनिक बताया जाता है । लड़कियों के हाथों में झण्डियाँ देकर वह उन्हें कांग्रेस के जुलूसो मे लिए फिरती है। अभि मि॰जवाहरलाल के आने पर इन कन्याओं ने सम्मान प्रदर्षन किया । इसी प्रकार दन कन्याओं को मौलान आजाद के दर्षन के लिए भी जे जाया गया । प्रष्न यह है कि यह कालिज आर्य समाज का खड़ा किया हुआ हे या कांग्रेस का ? फिर क्या इन कन्याओं को आर्य-धर्म की षिक्षा दी जाती है। या कम्युनलिज्म की? ताजा सामाचार यह है कि कन्याओं को उर्दू पढ़ाने के लिए एक मुसलमान षिक्षक या षिक्षिका रखी गई है। ऐसी अवस्था में आर्य समाजियों का कर्Ÿाव्य है कि वह या तो उस कालिज को बन्द करा दें या उस कालिज के नाम में से महात्मा का नाम उड़ा दे जिसके हृदस मे वैदिक धर्म के प्रचार की इतनी लगन थी और जो कन्याओं के अन्दर भी अपने धर्म का परिचय उत्पन्न करना चाहते थे। ‘‘ इसके अतिरिक्त इस षिक्षा मेें बड़ी आपŸिा यह है कि इससे कन्याओं के अन्दर अनुचित बांतो की आदत बढ़ती जा रही है। मुसलमान कन्याएँ भी कालिजों मे जाती है, किन्तु वे सब प्रायः एक मर्यादा में होती हैं । इनके मुुकाबले पर हिन्दू कन्याएं बन-ठनकर नंगे सिर जाती हैं। स्वतन्त्रता निस्सन्देह अच्छी वस्तु है किन्तु बच्चों या निर्बलों के लिए ऐसी आदतें भला करने के बजाय पतन करने वाली सिद्ध होती हैं । कन्याओं को बहकाने वाले दावा करतें है कि कन्याओं के अधिकार वैसे ही हैं जैसे लड़को के । उनसे कहा जाता है कि जब लड़के-लड़कियों के पिछे दोड़ते हैं तो लड़कियों को भी लड़को का पीछा करने की स्वन्त्रता होनी चाहिएं इन दिनो लाहौर के कांग्रेसी अंग्रेजी पत्र में दो लेख प्रकाषित हुए है। इनमें ‘कन्यादान ’षब्द हंसी उड़ाते हुए बताया गया है कि कन्यादान की प्रथा बहुत बुरी है । इसका अर्थ यह है कि कन्याएँ बड़ी होकर स्वयं अपने लिए कि खोज करें जैसा कि इंग्लैंड और अमेरिका में होता है । इनके लिखने वालो को ज्ञान नहीं कि पति की खोज की इस विधि से इंग्लैड और अमेरिका से समाज में भी कितनी बुराईयाँ उत्पन्न हैं। यह ठीक है कि अंग्रेज और अमेरिकन उन बुराइयों को सन्तोबा से सहन कर रहे हैं, किन्तु यह आवष्यक नहीं कि हम भी उनका अन्धानुसरण करके हिन्दू समाज को विपरीत रास्तों पर डांल दें । हिन्दू समाज की प्रथा के अनुसार कन्या के लिए वर खोजना मां-बाप का कर्Ÿाव्य है। वे भली प्रकार सोच-समझ कर यह काम कर सकते हैं । अन्यथा नवयुवती कन्या को बहकाने वाली कई बातंे हो सकती हैं जिनका परिणाम किसी अवस्था में भी अच्छा नहीं हो सकता । ‘‘ इन्ही दिनों लाहौर कि एक बस्ती में एक ‘षिक्षाप्रद’-घटना हुई है । एक युवती कन्या के पिता ने , जो आर्य समाजी हैं, अपनी पुत्री के लिए षिक्षक( ट्यूटर ) रखा । कन्या की षिक्षक से मित्रता हो गई । एक दिन कन्या ने माँ से कहा-‘‘आप अपने गहने संभाल कर रख दें ।’’ इससे अगले दिन प्रातःकाल वह सारे गहने लेकर उस षिक्षक से साथ भाग गई । पुलिस को खबर कर दी गई । साथ के प्रान्त में दोंनों गिरफ्तार करके लाहौर लाए गए। कहा जाता है- उस कन्या के द्वारा ज्ञात हुआ कि पन्द्रह-सोलह दूसरी कन्याएँ भी इसी प्रकार भागने के लिए तैयार हैं। कहा जाता है कि कालिजों की लड़कियां होटलो और क्लबों में जाकर पुरूबा-मित्रो के साथ खाती और उनके साथ-साथ हाथ मिलाने में संकोच नही करतीं । आज ही मुझे एक कन्या की कथा बताई गई हैं। उसने एक विवाहित युवक से मित्रता बढ़ा ली । परिणाम यह हुआ कि उसे गर्भ हो गया । जब कन्या के पिता को इसका ज्ञान हुआ तो उसने उस युवक से कहा कि अब तुम इससे विवाह कर लो । अन्यथा मैं तुम दोंनों को गोली से उड़ा दूँगा । इस पर नवयुवक तो सहमत हो गया किन्तु उसकी पहली स्त्री के पिता ने नवयुवक को धमकी दी कि यदि तुम दूसरा विवाह करोगे तो मैं तुम्हें जान से मार दँूगा । नवयुवक मे माता-पिता ने पहली बहू को आठ-दस हजार रूपये देकर अलग कर दिया। जब वह दूसरा विवाह करने के लिए बारात ले गए उस दिन उस कन्या ने बच्चे को जन्म दे दिया। अब लोग कहने लगे कि कन्या के विवाह में न केवल दहेज मिला है, वह बच्चा भी साथ लाई है। एक और बात भी भुलाई नहीं जा सकती कन्या और युवक के पारस्परिक सम्बन्धमें एक बड़ा भेद यह भी है। युवक तो कई बार बुरा कर्म करने पर पकड़ा नहीं जाता किन्तु कन्या जब बहकाई जाकर एक-आध बार बुराई में फँस जाती है तो उसकी वह बुराई छिपाई नहीं जा सकती, वह प्रकट हो जाती है, जिससे उसके जीवन पर कलंक लग जात हैं।

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