हुतात्मा पुरुष : विशम्भर दयाल

हुतात्मा पुरुष : विशम्भर दयाल

लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063

हुतात्मा पुरुष : विशम्भर दयाल
विशम्भर दयाल का भारत की आजादी में जो परम योगदान को देखते हुए ऐसा लग रहा की आजादी पश्चात भारत के क्रांतिकरियो की अवहेलना ,अपमान ,परिष्कार जितना भारत के शासको ने किया है वो भी अनायास नहीं बल्कि जानबूझकर किया है यह राष्ट्रीय अपराध नहीं है तो क्या है साथ ही जनता ने भी उनको यथोचित सम्मान नहीं दिया यही कारण है की आज उनकी लिखी पुस्तकें तो दूर इनकी फोटो भी उपलब्ध नहीं है स्वर्णिम भारत बनाने के उनके सपने थे वो सब मिटटी में मिला दिया गया ऐसे क्रांतिकरियो की इतनी भयंकर उपेक्षा घोर अनर्थ शिव शिव खेदास्पदम परमम्
विशम्भर दयाल का जन्म 1893 में राजस्थान के राठ अंचल के अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे के सबलपुरा मोहल्ले में एक प्रतिष्ठित ब्राहमण परिवार में हुवा था इनके पिता का नाम वासुदेव था विशम्भर दयाल की प्राम्भिक शिक्षा बहरोड़ में हुई थी असाधारण प्रतिमा के धनी होने के कारण आधुनिक शिक्षा हेतु दिल्ली भेजा गया वहा मास्टर अमीरचंद और अवध बिहारी के माध्यम से सचीन्द्र नाथ सान्याल और रासबिहारी बोस से परिचय हो गया था 23दिसंबर, 1912 को भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग को सम्मानित करने के लिए हाथी, घोड़े व भीड़ एकत्रित करने के लिए जा रहे थे 7 उस पर बम फेका गया उसके तार निश्चित रूप से विशम्भर दयाल से जुड़े हुए थे तब से फरार ही चल रहे थे उसके पश्चात 23दिसंबर, 1913 को भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग पर सचीन्द्र नाथ सान्याल के साथ रह रहे सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने काशी नरेश का रिवाल्वर चुराकर सन 1913 में मुगल सराय रेलवे स्टेशन पर गोलिया दाग कर साहस का परिचय दिया गया परन्तु वायसराय लार्ड हार्डिंग फिर बच गया इस घटना में भी निश्चित रूप से विशम्भर दयाल से जुड़े हुए थे बनारस षडयंत्र में भी निश्चित रूप से विशम्भर दयाल से जुड़े हुए थे फिर बाद में चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह व उनके साथियों के साथ सह कर्मी रहे और ठीक सत्रह वर्ष बाद 23दिसंबर, 1929 को वायसराय लार्ड इरविन की रेलगाड़ी में बम विस्फोट में भी निश्चित रूप से विशम्भर दयाल से जुड़े हुए थे 1930 में फिलास्पी ऑफ़ दि बम नामक पर्चा पूरे देश में बाटा गया तब विशम्भर दयाल ने कश्मीरी गेट व उसके आस पास पर्चा वितरण किया गडोदिया स्टोर डकेती में भी निश्चित रूप से विशम्भर दयाल से जुड़े हुए थे विशम्भर दयाल गिरफ्तारी से बचने के लिए उज्जैन के किसी मंदिर में रहने लगेउन्नीस दिन की फरारी जीवन काटने के बाद 16 मार्च 1931 दिन उज्जैन की सशस्त्र पुलिस ने घेर लिया ने पुलिस को ललकारा दोनों हाथो में दोनों पिस्टलो से सटीक निशाने साधने लगा पुलिस की एक गोली विशम्भर दयाल के पेट में लगी बेहोस हो गए अंग्रेज सरकार राज जाने बिना मरने नहीं देना चाहती थी गुप्त सूचानावो को उगालने के लिए पुलिस के प्रशिक्षिको द्वारा बार बार होश में लाकर यातनाये देते इस प्रकार विशम्भर दयाल मोत व जिंदगी से झूझ रहा है 22 अप्रेल 1931 को मोका देखा कर विशम्भर दयाल ने डाक्टरों के लगाये टांको को हाथ से फाड़ लिया खून का फवारा बह निकला विशम्भर दयाल भारत माता को अपना जीवन बलिदान कर दिया क्रांन्तिकारी गतिविधियों में विशम्भरदयाल का नाम भाई साहब और भवानी भी था

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