वो क्रांतिकारी जिसे फांसी देने को जल्लाद भी नहीं थे तैयार

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लेखक:- डॉ पवन कुमार सुरोलिया सम्पर्क सूत्र- 9829567063

मंगल पांडेय की 194वीं जयंती पर विशेष

मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था. मंगल पांडेय का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत की थी और 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में अंग्रेजों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया था. हालांकि वह पहले ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सैनिक के तौर पर भर्ती हुए थे लेकिन ब्रिटिश अफसरों की भारतीयों के प्रति क्रूरता को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल लिया था.
अंग्रेज अधिकारियों द्वारा भारतीय सैनिकों पर अत्याचार तो हो ही रहा था. लेकिन हद तब हो गई. जब भारतीय सैनिकों को ऐसी बंदूक दी गईं. जिसमें कारतूस भरने के लिए दांतों से काटकर खोलना पड़ता है. इस नई एनफील्ड बंदूक की नली में बारूद को भरकर कारतूस डालना पड़ता था. वह कारतूस जिसे दांत से काटना होता था उसके ऊपरी हिस्से पर चर्बी होती थी. उस समय भारतीय सैनिकों में अफवाह फैली थी कि कारतूस की चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनाई गई है. ये बंदूकें 9 फरवरी 1857 को सेना को दी गईं. इस्तेमाल के दौरान जब इसे मुंह लगाने के लिए कहा गया तो मंगल पांडे ने ऐसा करने से मना कर दिया था. उसके बाद अंग्रेज अधिकारी गुस्सा हो गए. फिर 29 मार्च 1857 को उन्हें सेना से निकालने, वर्दी और बंदूक वापस लेने का फरमान सुनाया गया.मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ बैरकपुर में जो बिगुल फूंका था. वह जंगल की आग की तरह फैलने लगी. विद्रोह की चिंगारी पूरे उत्तर भारत में फैल गई. इतिहासकारों का कहना है कि विद्रोह इतना तेजी से फैला था कि मंगल पांडे को फांसी 18 अप्रैल को देना था लेकिन 10 दिन पहले 8 अप्रैल को ही दे दी गई. ऐसा कहा जाता है कि बैरकपुर छावनी के सभी जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से इनकार कर दिया था. फांसी देने के लिए बाहर जल्लाद बुलाए गए थे. 1857 की क्रांति भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था. जिसकी शुरुआत मंगल पांडे के विद्रोह से शुरू हुआ था.

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