आयर्वेद[ Aayurveda] और केन्सर [Kensar-Cancer] -10

आयर्वेद[ Aayurveda] और केन्सर [Kensar-Cancer] -10

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लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063

श्वास नली का कैंसर
[यह लेख अभी प्रारंभिक अवस्था में है अभी इसमे कई महत्वपूर्ण संशोधन होने है ]
श्वास नली का कैंसर आयुर्वेद में प्राणवह स्रोतस की व्याधि कहा जाता है शरीर में 16 प्रकार के स्रोतस होते है जिस मार्ग में एक ही ही वस्तु का आवागमन करती है उसको स्रोतस कहा जाता है शरीर में अधिकतम कैंसर श्रोत बिगड़ने से होते है तदेत्स्रोतसाम प्रकृति भूतत्वान विकारैरूपसृज्यते शरीरम
[चरक ]
अगर श्रोत प्राकृत रूप में है शरीर में रोग संभव ही नहीं है
तत्र प्राणवहानाम स्रोतसाम हृदयं मूलं महास्रोतश्च
प्रदुषटानाम तु खल्वेषा मिदं विशेषज्ञान भवति
तद यथा अतिसृष्टमतिबद्धं प्रकुपितमल्पाल्पम भीक्ष्णम वा सशब्दशूलं
मुछ्र वसन्तं दृष्टवा प्राण वहान्यस्य स्रोतांसि स्रोतांसि प्रदुष्टानीति विद्यात
[चरक]

प्राणवहस्रोतस का उत्त्पति स्थान ह्रदय या पेट है जब प्राणवह स्रोतस बिगड़ता है तभी रोगी को उपद्रव होता है अर्थात रोग परेशान करता है दीर्घ श्वास -रोगी को रूक रूक कर श्वास लेना श्वास की तादाद बढ़ जाना और आवाज के साथ और शूल के साथ श्वास लेना यह श्वास नली के कैंसर का लक्षण है
क्षयातसंधारण द्रोक्षयाह्यामातक्षुधितस्यच
प्राणवाहोनी दुष्यन्तिस्रोतान्स्येश्च दारुनै
[चरक]
श्वासनली का कैंसर क्यों होता है धातुवो का क्षय होने से ,शरीर के वेगो की रूकावट करने से,शरीर रूक्ष हो जाने से ,अति परिश्रम करने से ,भूखा रहने ,जब वायु का प्रकोप होता है तभी श्वास नली का कैंसर होता है
अति प्रवृति: संघ्गो वा सिराणाम ग्रंथायोह्यपि वा
विमार्गं गमनं वापि स्रोतसा दुष्टि लक्षणम
[चरक]
स्रोत में रस आदि धातुये बहने लगे या रुक जाय या स्रोतों में ग्रंथि हो जाय या स्रोत में बहती धातु विमार्ग गमन करने लगे इसको स्रोत बिगड़ा बताया गया है
प्राणोंदकान्नवहानाम दुष्टानाम श्वासिकि क्रिया
कार्या त्रिश्नोपशमर्ना तथैवाम प्रदोषिकि
[चरक]
श्वास नली के केंसर का ईलाज श्वास रोग के इलाज के अनुसार करना चाहिए जलवह स्रोतस का इलाज तृषा रोग के इलाज के बराबर करना चाहिए और अन्न नली के केंसर की चिकित्सा आम दोष की की चिकित्सा के अनुसार करना चाहिए इस इस कैंसर में स्नान के लिए कई वैद्य मना करते है परन्तु मेरी दृष्टि में ऋतू काल रोगी का बलाबल का ध्यान देकर उष्ण जल या कोष्ण समशीतोष्ण या ओषधियुक्त जल से स्नान किया जा सकता है या कपडे आदि जो भीगा हुवा हो से शरीर का प्रक्षालन किया जा सकता है रोगी को गिलोय सोठ छोटी कटेरी से ओषध योजना की जा सकती है इस रोग में बरफ [ठण्डी चीज ]मिठाई ,तेल में पकाई हुई चीज तिल उड़द और मूंग फली ,दही ,घी ,गुड,शकर,गन्ने का रस आदि खाने की सख्त मना है रोगी को चावल दाल ,हरी सब्जी और हल्का गाय और बकरी का दूध विशेष कर बकरी के दूध इस्तेमाल करनी चाहिए अमृत मंजरी रस 2-2 गोली शहद ,तुलसी ,और अदरख के साथ देना चाहिए यह कैंसर बलवान रोगी को होने पर शुरुवात में मिटने की संभावना रहती है जितना अधिक पुराना रोग होता जायेगा उतना ही कठिन ठीक होगा जितना रोगी दुर्बल होगा उतना ही इस कैंसर में सुधार होना मुश्किल होगा

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