जड़ी बूटी माला 2 -भल्लातक [भिलावा ]

जड़ी बूटी माला 2 -भल्लातक [भिलावा ]

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:लेखक-डॉ.पवन कुमार सुरोलिया [ बी.ए.एम.एस]

संपर्क सूत्र -9829567063,9351008528

[ विशेष -यह लेख अभी प्रारंभिक अवस्था में है]

गुण :-

1) शुक्र जनक होने के कारण अल्प शुक्रता दूर करता है | अतः सेक्स की कमी व अल्प स्तम्भन वाले व्यक्तियों को भिलावे का सेवन करना उचित रहता है | वीर्य वर्धक व पुष्टि कारक है | पोष्टिक व ओज वर्धक है | बल वीर्य बुद्धि आदि बढाने के लिए भिलावा में मेद्य अर्थात मेधा जनक गुण तथा शुक्रल व विष्य गुण भी है | तरुणावस्था में किसी भी कारण से वीर्य क्षय हो गया हो अशक्ति व निर्बलता बढ़ गयी हो तो भिलावा सेवन करने से सब रोग दूर हो जाता है, तथा बल वीर्य की वृद्धि होती है, तथा बुद्धि व स्मरण शक्ति भी बढती है | बाजीकरण के लिए भिलावा उत्तम दर्जे का माना गया है | भिलावा मालकाग्नी के संयोग से बनी हिंगुल भस्म नपुसकता को दूर करने में अव्यर्थ औषधि है |

2) उदर के सभी रोगों को दूर करने की भिलावा में अथाह शक्ति है | उदर रोग में भिलावा सेवन करना लाभ कारी है | (उदर रोग – अनाह, अफारा, संग्रहणी, वायुगोला, उदरक्रमी, और मन्दाग्नि, बिबंध (कब्ज)) पाचक, अग्निप्रदीपक | क्षुधा वर्धक (भूख बढाता है), श्रेष्ठ पाचक है, यदि भूख बराबर नहीं लगती हो, कब्जी खूब रहती हो, पेट में अफारा हो, कैसा भी अपचन या अजीर्ण क्यों न हो, अजीर्ण जन्य आमातिसार जब पेट में दर्द होकर पतली आंव गिरती हो तो ऐसे भिलावा सेवन अमृत के समान है | मंदाग्नि(डिसपेप्सिया) में भी लाभकारी | प्लिहोदर में अभया (हरड), भिलावा और जीरे का योग लाभकारी होता है | हेजे के कीटाणुओं को नष्ट करने में अद्भुत लाभ देता है | बताते हैं एक खुराक में ही पेट में जाने के बाद पांच मिनट के अन्दर ही अपना असर दिखाकर दस्त और उलटी बंद हो जाती है, हेजे में इमली के साथ देना चाहिए | जिसके कारण प्रतिक्रिया होने का डर नहीं रहता और जठराग्नि को प्रदीप्त कर देता है | अतिसार रोगी को भी इमली के साथ भिलावा अति लाभ देता है | जंगली जडीबुटी के लेखक का हेजे के अनेक रोगियों पर अनुभव है की हेजे में अनेक दूसरी औषधियां जो असफल हो गई हैं मूर्छित अवस्थाओं पर पहुंचे हुए ठन्डे हाथ पैरों वाले भयंकर रोगी भी भिलावे से अच्छे हुए हैं |

3) सभी प्रकार के वातज और कफज प्रमेह |

4) सभी प्रकार के घाव और क्रमी को नष्ट करता है |

5) दांतों को मजबूत बनाता है |

6) शोथ (सुजन ) रोग को दूर करता है |

7) श्वास रोग को दूर करता है | कफ़ की खांसी व जीर्ण प्रतिश्याय (पुरानी जुखाम और बार बार होने वाली जुखाम) के रोगी को मुलेठी के साथ में देना चाहिए |

😎 स्वेत और सफ़ेद कोढ़ (ल्युकोर्डमा) व पुराने चर्म रोगों को ठीक करने की क्षमता रखता है | कुष्ठ, दाद, पामा, आदि रोगों पर दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है, यद्यपि कुष्ठ में दूध का वर्जन है तथापि भिलावा प्रयोग में दुग्धाशी स्यात | कहा गया है – कारण इसका प्रयोग उष्ण होता है इस कारण से दूध शक्कर के सेवन से इसकी उष्णता कम होती रहती है | इस कारण से रोगी को सिवाय दूध और भात के अतिरिक्त कुछ न देवे | कुष्ठ (लेप्रोसी) को दूर करने में अपूर्व शक्तिशाली है | क्योंकि इसमें चर्म रोग हरने की शक्ति है इससे चर्म की सेलें, लसिका वाहिनियाँ इत्यादि नविन ठीक हो जाती हैं और भिलावा चर्म को उज्जवल करता है | उसकी सेलों के अन्दर का रंग विकृति पदार्थ सब चाट जाता है |

9) ज्वर नाशक गुण विद्यमान होने के कारण से जीर्ण ज्वर ग्रंथि (ब्लड कैंसर) व डेंगू जैसे रोगों में लाभकारी है | ज्वर के लिए भिलावा अतिउत्तम है क्योंकि संजीवनी वटी में भिलावा पड़ता है तथा भिलावा मलेरिया के कीटाणुओं पर तो अपना पूरा असर डालता है |

10) प्रमेह :- प्रमेह बार-बार दुःख देने वाला रोग है यदि बार बार बहुत प्रमाण में मूत्र होता हो, प्यास अधिक लगती हो, रात्री में नींद नहीं आती हो तो भल्लातक (भिलावा) बहुत लाभ करता है | साथ में यदि भिलावो के योग के साथ सुखा हुआ छोटा बेलफल और कत्था का प्रयोग करें तो शीघ्र लाभ मिलता है |

11) उपदंश :- उपदंश पर भिलावा एक सफल औषधि है – यदि पथ्य में रोटी घी और शक्कर के सिवाय कुछ न देवें |

12) श्वेत प्रदर (लुकोरिया ) में भिलावा के साथ दारुहल्दी का महीन कपड छान चूरन लेने से तथा साथमें घी और शक्कर चटाने से लाभ होता है |

13) आर्तव विकार :- जिस स्त्री का मासिक धर्म बराबर न होता हो, कष्ट से होता हो तो भिलावे के सेवन से आर्तव खुलकर आने लगता है |

14) ग्रंथि, अर्बुद, गण्डमाला, गलगंड, अपची, और श्लीपद रोग पर :-

ग्रंथि :- शरीर पर कहीं भी ग्रंथि हो गयी हो और वह धीरे धीरे बढ़ रही हो जैसे कंठमाला, गलगंड आदि जो न पकती हो न फूटती हो, इस प्रकार की ग्रंथि को भिलावे से उत्तम लाभ होता है | कांख बिलाई अर्थात यह दुखदायी ग्रंथि जो कांख या बगल में होती है उसमे भी भिलावा उत्तम कार्य करता है|

श्लीपद (फिलपाव- हाथीपाँव):- यह मेध वृद्धि के कारण होता है ..इस पर भिलावा अच्छी तरह कार्य करता है | श्वेताणुओं की वृद्धि और सब ग्रिन्थियों की उत्तेजना मिलने से गाँठ और अवयवों की वृद्धि हुई हो तो उसका ह्रास होने लगता है |

15) मज्जातंतु के रोग व भिन्न भिन्न प्रकार के वात रोगों में भिलावा बहुत लाभकारी है | न्यूरोलोजी के केस में चमत्कारिक लाभ मिलता है | उरुस्तम्भ रोग में भी लाभकारी है | मस्तिष्क की थकावट में भी इसको देने से बहुत लाभ होता है | मज्जा तंतु समूह रोगों में भिलावे को थोड़ी मात्रा में अधिक दिनों तक देना चाहिए | पक्षवध (लकवा), अर्धितवात (मुख का लकवा), कम्प्वाय (हाथ पैर व पूरा शरीर कापना) व अन्य आमवात, संधिवात, ग्रिद्रिशी वात रिंगनवाय आदि समस्त वात रोगों को नष्ट करने वाला है |

16) भीतरी चोट – कभी कभी आकस्मिक घटना से मनुष्य जब ऊपर या नीचे से कहीं गिर पड़ता है तो उसके शरीर के भीतर उस चोट की वजह से बड़ी जर्जरता हो जाती है और किसी किसी के अन्दर तो यह असर जन्म भर के लिए रहा जाता है | ऐसी भयंकर चोटों में भिलावा बड़ा अद्भुत कार्य करता है | इसके सम्बन्ध में सन १९१२ के जून मास के वैध कल्पतरु में एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसका सारांश नीचे देते हैं –

गिरनार नामक जैनियों के प्रसिद्द तीर्थस्थान में पत्थर चट्टी नामक एक बहुत प्रसिद्द है | इस स्थान पर उन दिनों खगेन्द्र स्वामी नामक महन्त रहते थे | एक दिन ये महन्त पहाड़ की एक टेकरी के ऊपर शौच के लिए गए और वहां से वापस लौटते समय उनका पैर फिसलने से करीब १० हाथ नीचे एक खाई में गिर गए | दैवयोग से उनके बाहरी शरीर में तो कोई चोट नहीं आई मगर भीतर ऐसी पछाड़ लगी कि उनका हिलना चलना बिल्कुल बंद हो गया और पानी पीने तथा पेशाब करने के लिए भी उनका बैठना उठना असंभव हो गया | यह बात जब जूनागढ़ में मालुम हुई तब वहां के दीवान साहब और चीफ मेडिकल आफिसर डॉ त्रिभुवन दास उनके पास गए और उनको कहा कि आपको 4-6 महीने दवाखाने में रहना पड़ेगा | आपकी सुविधा की हर प्रकार की व्यवस्था कर दी जायेगी और आप वहां चलिए | तब महाराज ने कहा कि अभी तो वहां चलना बहुत कठिन है | थोड़े दिनों के बाद कुछ आराम होने पर चलेंगे | कुछ दिनों तक उन्होंने डाक्टर की दवा वहां ली, पर चोट इतनी सख्त थी कि उससे कुछ भी लाभ नहीं हुआ, तब उन्होंने भिलावे का प्रयोग एक पुस्तक में देखा तो उस भिलावे के योग को प्रयोग किया महन्त जी ने जैसे ही इस भिलावे के प्रयोग के शुरू किया पहले ही दिन उनको रात्रि में आराम से नींद आई, दुसरे दिन बिना किसी मदद के अपने आप पंखा चलाने लगे बिना किसी मदद के, तीसरे दिन शरीर में कुछ गर्मी मालुम होने लगी | जहाँ पेशाब को उठते समय जहाँ चार पांच मनुष्यों के सहारे की आवश्यकता पड़ती थी वहां सिर्फ एक मनुष्य के सहारे से पेशाब करने के लिए नीचे उतरे, चौथे दिन उनका सारा शरीर लाल हो गया, बारीक फुंसियाँ शरीर पर फुट निकली | उस दिन बिना किसी व्यक्ति के सहारे के बिस्तर से उठकर लकड़ी के सहारे अपने कमरे में फिरने लगे | फिर उन्होंने दवा नहीं ली क्योंकि सारे शरीर में भिलावा फुट निकला था | तब उन्होंने भैंस का गोबर शरीर पर मलकर धुप में बैठना शुरू किया | चार दिन करने पर भिलावा का खराब असर मिट गया | दस दिन के भीतर उनके शरीर में बहुत शक्ति आगई और जठराग्नि भी बहुत प्रदीप्त हो गयी |दसवें दिन वे जूनागढ़ के लोगों से मिलने के लिए अपने आप पहाड़ से पैदल उतरकर जूनागढ़ गए | परन्तु हमारा मत में आज के समय में चिकित्सक इतनी मात्रा नहीं खिलावें | और बहुत ही अल्प मात्रा में और बहुत ही अधिक शोधन किये हुए भिलावे का प्रयोग करना चाहिए |

17) गुदा के रोग – अर्श (मस्से), बवासीर, कृमि, भगंदर (फिस्टुला नासूर), फिसर (विदारिका) आदि रोगों को दूर करने की क्षमता रखता है, भल्लातक अर्श (बवासीर) में बड़ा हितकारी है, वातार्श तो दूम दबाकर भाग जाता है |

18) हस्तिमेह (बहुमूत्र –पोलियुरिया) वृद्धावस्था में या अन्य रोगादि कारणों से पेशाब का परिमाण अधिक होता है और मूत्र त्याग भी अनेक बार होता है | रात्रि को बार बार उठना पड़ता है जिससे निद्रा भी पूरी नहीं मिलती | तृषा भी बहुत लगती है और कृशता आती है | उस पर भिलावे का सेवन आशीर्वाद के समान हितावह है | इसमें भिलावे के साथ बेलगिरी को साथ लेने से जल्दी लाभ मिलता है |

19) यकृत (लीवर):- भिलावा रक्त में जल्दी मिल जाता है किन्तु देह से बहार अति धीरे धीरे निकलता है, यकृत में रक्त आवागमन जल्दी और नियम पूर्वक होता है | भिलावा क्षुधावर्धक है और यकृत स्राव अधिक कराता है |

20) जिव्हा स्तम्भ मुकत्व (गूंगापन) में भिलावा सेवन से अच्छा लाभ होता है |

21) मेधा जनक होने के कारण भिलावा अपस्मार (मिर्घी) और स्नायु जाल के दुसरे रोगों में लाभकारी है |

22) मोच और चोट के कितने ही गंभीर केस हो फायदा अवश्य मिलता है |

23) दर्पनाशक – ताजा नारियल, सफ़ेद तिल, जौ, विलसा का तेल, फिन्दक (मात्रा १-२.५० मासा) जैतून का तेल (मात्रा १ मासा), मक्खन, चौलाई का रस, नारियल का तेल व ईमली का रस, गाय का घी |

यदि भिलावे के तेल के लग जाने से शरीर में व्यर्थ ही व्रण हो गया तो – हरा धनिया पीसकर लगाये, या तिल को चिकनी मिट्टी व पानी के साथ बाँटकर लेप करें, या तिल को मक्खन के साथ पीसकर लेप करें | या मुलहठी, तिल, मक्खन और दूध एकत्र पीस कर लेप करें, या मुलहठी, नागरमोथा और कैथा की पत्तियां को एकत्र कर लगावें या सिर्फ खोपरे का शुद्ध तेल लगावें | इमली के बीज | छाछ शरीर पर मलकर 3-4 घंटे धुप सेवन करें | इसी प्रकार गाय, भैंस का गोबर शरीर पर मलकर 3-4 घंटे धुप में बैठने से लाभ होता है |

24) दोष :- खुजली, शोथ, व्रण(घाव), सन्निपात कारक व उन्माद कारक है, चमड़ी लाल होकर छोटी छोटी फुंसियाँ हो दाह उत्पन्न हो जाता है और फिर धीरे धीरे सम्पूर्ण शरीर में फ़ैल जाती है |

25) भिलावा का शोधन – भिलावे को गीली जमीन में गाड़ देंगे, बीस रोज बाद उनको जमीन से निकाल कर शीतल या गरम पानी से धोकर साफ़ कर लेंगे, फिर इनको एक दिन रात इतने जल में छोड़ देंगे जितने में भली-भाँती डूब जाए, 24 घंटे के उपरान्त उनकी ढिपुनी काटकर फेंक दें या फिर भिलावे का मुख ईंट पर तब तक रगड़ते रहें जबतक उसकी ढिपुनी अलग नहीं हो जाए | फिर कपडछान किये हुए ईंट के चूर्ण में इनको मिलाकर एक दिन रात के लिए रख छोड़ें | फिर इनको गरम जल से धोकर गाय के गोबर में सात दिन तक रख छोड़ें | उसके बाद फिर गरम पानी से धोकर जितने भिलावे हों उनकी गणना कर लेवें | जितनी संख्या में भिलावे हैं उतनी ही सेर गौ-मूत्र को लेवें | यदि शीघ्रता है तो भिलावे को गौ मूत्र में डालकर मंद मंद अग्नि पर १२ घंटे पकावें, और यदि शीघ्रता नहीं है तो भिलावे की पोटली बनाकर 72 घंटे तक भिलावे का दोलाविधि यंत्र से शोधन करें | उसके पश्चात् यदि शीघ्रता है तो गाय के दूध में 12 घंटे मंद मंद अग्नि पर पकावें | यदि शीघ्रता नहीं है तो गाय के दूध में दोला विधि यंत्र से शोधन करें | उसके पश्चात् नारियल के पानी में यदि शीघ्रता है तो १२ घंटे मंद मंद आंच पर पकाए | और यदि शीघ्रता नहीं है तो 72 घंटे तक नारियल के पानी में दोला विधि यंत्र से शोधन करें | फिर इसको किसी भी रूप में दावा बनाकर काम में ले सकते हैं –स्मरण रहे जितना अधिक शोधन होगा उतना अधिक अमृत बनता जाएगा यह भिलावा |

26) परहेज – खटाई, तेल, गुड, मिर्च मसाला व गरम चीज न खावें, स्त्री प्रसंग नहीं करें, जितने दिन भिलावा खावें उसके दूगुने दिन तक परहेज करें | भिलावा सेवनकाल में खटाई खाने से सुजन आजायेगी | रोगी को बिलकुल हल्का आहार देना चाहिए | जुनी साठी चावल, दूध के साथ या फिर साबूदाना पर ही रखना चाहिए | इसके सेवन काल में तेल लालमिर्च खटाई कच्चा मीठा नहीं खाना चाहिए |

27) विशेष :- गर्भवती स्त्री को नहीं देना चाहिए | छोटी उम्र के कमजोर बालक व स्त्रियों को कम मात्रा में देना चाहिए, सोलह साल के ऊपर सशक्त मनुष्य को भिलावे की पूर्ण खुराक देनी चाहिए |

लेखक-डॉ.पवन कुमार सुरोलिया [ बी.ए.एम.एस]

संपर्क सूत्र -9829567063,9351008528

[ विशेष -यह लेख अभी प्रारंभिक अवस्था में है

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