क्रांति दूत -भाई बालमुकुंद

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लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063

क्रांति दूत -भाई बालमुकुंद
[जन्म -1869 बलिदान दिवस ८ -मई-1915]

फांसी का हुक्म सुनते हुए भाई बालमुकुन्द ने कहा कि मंै बड़ा भाग्यशाली हूं कि जिस दिल्ली नगर में मेरे पूज्यनीय व पूर्वज भाई मतिदास जी ने धर्म व देश के प्रति 9 नवम्बर 1671 को चांदनी चौक में हंसते हुए अपना शरीर आरे से चिरवा दिया था आज मैं भी देश के लिये प्राण न्यौछावार कर रहा हूं । भाई बालमुकुन्द को 26 वर्ष की आयु में 8 मई 1914 को लार्ड हार्डिंग प्रकरण में दिल्ली के केन्द्रीय कारागार में फांसी दी गई। भाई बालमुकुन्द की देश भक्ति एवं त्याग की खानदानी परंपरा पूर्व से चली आ रही थी । वैसे तो भाई बालमुकुन्द मेधावी छात्र थे और 1910 में पंजाब विश्वविद्यालय में बी.ए.बी.टी. की डिग्री में तृतीय स्थान प्राप्त किया था और उस समय यह शिक्षा उन्हें एक पद तथा ऊंचा प्रतिष्ठित कार्य दिला सकती थी तथा लाहौर जैसे शहर में उनके लिय ऐशोआराम हर तरह से संभव हो सकता था परंतु उस समय देश की गुलामी और अंग्रेजो के अत्याचार से वे बहुत उदास थे, उनके विचार क्रांतिकारी मास्टर अमीरचंद एवं अवध बिहारी बसंत कुमार क्रांतिकारियों के साथ उनका साथ हो गया और देश के लिए मर मिटने का संकल्प लिया भाई बालमुकुन्द जी को उत्तर भारत में क्रांतिकारी विचारों को साहित्य के जरिए प्रचार करने का कार्य सौंपा गया । उन्हें बम बनाने का प्रशिक्षण भी दिया गया। मास्टर अमीरचंद अवध बिहारी को भी अलग-अलग स्थानों पर कार्य सौंपे गए। भाई बालमुकुन्द के क्रांतिकारी विचार तथा उग्र विचारधारा को देखते हुए बड़े भाई जयराम ने उनका विवाह दीवानचंद दत्त की कन्या रामरखी से करने का निर्णय लिया ताकि विवाह बंधनों में फंसकर क्रांति के विचारों के मोह से उनका ध्यान हट जाए। भाई बालमुकुन्द ने अपने बड़ों का सम्मान रखते हुए विवाह तो कर दिया परंतु कहा जाता है कि विवाह के पश्चात् सुहागरात को ही भाई बालमुकुन्द ने पत्नी रामलखी को बता दिया मैं क्रांतिकारी हूं मेरा लक्ष्य भारत माता को स्वतंत्र करवाना है। मैंने बड़ों को आज्ञा के आगे सिर झुकाते हुए विवाह किया है। भाई जी के विचारों को सुनकर पत्नी रामलखी ने देश की आजादी के लक्ष्य के प्रति कार्यों में सहयोग करने का निर्णय लिया। इसलिए भाई जी की कोई संतान नहीं थी जो यह दर्शाता हैं कि देश धर्म व स्वतंत्रता पहले है गृहस्थी बाद में ऐसे महापुरुष को याद किया जाना हम देशवासियों का कर्तव्य हैं। 23 दिसंबर 1912 को भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग को सम्मनित करने के लिए लाखों नर-नारियों, सैकड़ों घोड़े, हाथी आदि एकत्रित किए गए। अंग्रेज इस प्रदर्शन से अपनी शक्ति की प्रबलता दिखाना चाहते थे ओर यह बताना चाहते थे कि इतने बड़े साम्राज्य को हटाने की बात सोचना विनाश को गले लगाना हैं। भाई बालमुकुन्द और उनके साथियों को यह बाल गवारा नहीं थी कि प्रवेश किया तथा उनका भव्य जुलूस सजे हुए स्वर्ण हाथी पर चांदनी चौक से गुजर रहा था तभी भाई बालमुकुन्द तथा उसका साथी बसंत विश्वास बुरखा पहने दर्शकों की भीड़ में सम्मिलित हो गए, बमों के धमाके हुकए जूलूस अस्थ व्यस्त हो गया, भारी भगदड़ मच गयी लार्ड हार्डिंग को गंभीर चोटें आई उनका अंगरक्षक वही मारा गया कोई जाना नही सका कि बम कहां से आया किसने फेंका अंग्रेजों ने इस अपमान बदला लेने के लिए गिरफ्तारियां आरंभ कर दी। लगभग सवा वर्ष के पश्चात् दीनानाथ नामक व्यक्ति ने पुलिस को मार से क्रांतिकारी के बारे भेद खोल दिया। भाई बालमुकुन्द अपनी पत्नी को अपने रिश्ते का भाई परमानंद जी के पास छोडक़र जोधपुर चले गए तथा जोधपुर के महाराजा के पास उनके पुत्र राजकुमार सुमेर सिंह तथा उमेर सिंह को ट्यूशन पढ़ाने का कार्य प्राप्त कर लिया। चूकिं अंग्रेज लोग राजा महाराजाओं से संपर्क रखते थे, बालमुकुन्द की योजना यही थी इसके ब्रिटिश हुकूमत का इरादा भी पता लगया जा सकता है जिससे कि भविष्य में अपनी अन्य रोजनाओं को भी क्रियान्वित कर सकेंगे। अग्रेजों द्वारा हार्डिंग बम प्रकरण के क्रातिकारियों का पकडऩे के लिए बड़े-बड़े इनाम रखे गए परिणामस्वरूप 19 फरवरी को अवध बिहारी तथा 25 फरवरी को बंसत विश्वास को गिरफ्तार कर लिया गया तथा जोधपुर के राजकुमार के शिक्षक के रूप में पढ़ते हुए भाई बालमुकुन्द जी पहचान लिए गये और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया समस्त क्रान्तिकारियों पर मुकदमा चला 5 फरवरी 1914 को फैसला सुना दिया जिसमें भाई बालमुकुन्द बसंत विश्वास मास्टर अमीरचंद तथा अवध बिहारी जी को मुत्युदंड की सजा दी गई । 8 मई 1914 को दिल्ली की केन्द्रीय जेल में जो कि आजकल मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज कहलाता है। उन्हें फांसी के लिए ले जाया गया उस समय का दृश्य भी ऐतिहासिक था जब भाई बालमुकुन्द को फांसी के तख्ते पर ले जाया जा रहा था तो उन्होंने सिपाहियों से हाथ छुड़ा लिया और दौडक़र अपने हाथों से फांसी का फंदा चूमकर अपने गले में डाल दिया था उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी अस्थियों को दिल्ली के चांदनी चौक में बिखेर दी जाए जहां कि उनके पूर्वज भाई मतिदास को आरे से चिरवा दिया गया था। ब्रिटिश सरकार ने भाई बालमुकुन्द का शव परिवारजनों को नही सौंपा बालमुकुन्द क्रांति दूत थे इसी परंपरा को उनके रिश्ते के भाई, भाई परमानंद जी ने आगे बढ़ाया था। उन्हें भी लाहौर षडय़ंत्र कांड में सजा हुई। भाई बालमुकुन्द एवं क्रांतिकारी राजगरू, सुखेदव, उदय सिंह तथा उनके क्रांतिकारियों को प्रेरणा मिली थी। जिन्होंने अपनी जवानी देश के लिए लुटा दी। ऐसे देश भक्तों पर हमें गर्व है।

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