लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063
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अर्बुद [कैंसर] की साध्य व असाध्य
1-साध्य-
साध्य यानि शीघ्र व सरलता से ठीक होने वाला या यो कह सकते है करीब करीब ठीक होने वाला सबसे पहले दोष परक अर्थात वातादि दोष से उत्पन्न होने वाला कैंसर जल्दी ठीक हो सकता है क्योकि वातादि दोषों को तो आसानी से नियंत्रण में किया जा सकता है वातादि दोष परक कैंसर जब वात,पित्त,कफ तीनो साथ मिलकर शरीर के किसी हिस्से पर छोटी मोटी ग्रन्थि बना देते है तब होता है इसमे कफ की प्रधानता होती है तब इसमे कोई कष्ट नहीं होता पकने में बहुत देर होती है जब वात आईटी की प्रधानता बढ़ती है जा इसमे थोडा बहुत दर्द होता है और जल्द पक जाती है वातादि दोष परक कैंसर शरीर के ऊपर के भागो में ही होता है शरीर की गहराई में नहीं जाता इसलिए इस कैंसर का इलाज संभव है
2-कष्ट साध्य–
दूसरा कष्ट साध्य जो कठिनता के साथ ठीक होने वाला यो कह सकते है कभी ठीक होने वाला और कभी ठीक न होने वाला रसरक्तादि धातु परक कैंसर कष्टसाध्य है क्योकि इसमे पहले वातादि दोषों को सुधारना पड़ता है वातादि दोषों को सुधारने के बाद रसरक्तादि धातुवो को सुधारना पड़ता है इसमे बहुत समय लग जाता है क्योकि तब तक कैंसर काफी बालस्श्ली बन जाता है और रोगी व परिस्थितिया काफी बदल जाती है यानि कष्ट के साथ व बड़ी मेहनत करने के बाद ठीक हो पाता है रसरक्तादि धातु परक कैंसर रसरक्तादि धातुवो को विकृत कर उत्पन्न करता है इसलिए इनकी गहराई अधिक होती है और मिटने में कष्टसाध्य हो जाता है यदि समय पर इलाज किया गया तो रोगी अच्छा हो सकता है देरी होने से रोग बढ़ जाने पर रोग को ठीक करना असाध्य जैसा हो जाता है इस स्थान का कैंसर इस लिए भयानक है की रस रक्त मांस और मेद ये चारो धातु बिगड़ जाती है कभी कभी अस्थि भी प्रभावित हो जाती है तभी रोगी को कुछ तकलीफ होती है इसमे रस रक्त मांस और मेद ये चारो धातु बिगडी हुयी होती है और तीनो वातादि दोष पहले से बिगड़े होते है इसलिए इसकी भयानकता भी बढ़ जाती है और उपचार होने में संभावना कम हो जाती है धातुवो से उत्पन्न होने वाला कैंसर शरीर के अन्दर और बाहर सभी जगह हो सकता है बाहर होने वाला कैंसर शरीर की बहुत गहराई तक पहुच जाता है इस लिए इसका बाहरी इलाज में सफलता मिल भी सकती है नहीं भी
3-असाध्य-असाध्य –
यानि बहुत ही कम ठीक होने वाला और होता है तो बड़ी मुस्किल से तथा मेरा मानना है की असाध्य भी ठीक होता है मेरे अनुभव बताते है की हमारे पास आते ही असाध्य है उन्ही मेसे कुछ रोगी बिलकुल 10 वर्ष से ठीक भी है कुछ रोगी 5 वर्ष तक ठीक भी रहे परन्तु कुछ रोगी दो से पाच साल बाद दवा बीच में छोड़ने के कारण दुबारा लोट आता है परन्तु कुछ रोगी बिलकुल ठीक होते होते परहेज तोड़ने के कारण या मेटासिस कैंसर के कारण अन्यत्र इन्फेक्शन हो जाने से ठीक नहीं हो पाते में तो असाध्य उनको मनाता हूँ जो दवा लेने की स्थिति में नहीं है परन्तु फिर भी हमने लेप ,नाक में दवा डालकर होस में लाना ,आदि के कष्ट को मम किया है परन्तु ऐसे व्यक्ति को बचा भी नहीं पाते मेरा अनुभब कहता है की बहुत से कैंसर शुरू से ही असाध्य है लेकिन कई दूसरे प्रकार के कैंसर भी है जो ठीक किये जा सकते है जो कैंसर असाध्य है उनके उपद्रव [कष्टों ]में भी लाभ हो जाता है मलपरक कैंसर असाध्यता की श्रेणी में आता है क्योकि सबसे पहले तीन दोष बिगड़ते है फिर सात रसरक्तादि धातुये बिगड़ती है इसके बाद तीन मल बिगड़ते है मलो की शुद्धी करते -करते बहुत समय लग जाता है तथा रोगी कमजोर होने से रोग ज्यादा बढ़ जाता हैमलपरक कैंसर असाध्यता की श्रेणी में आता है क्योकि सबसे पहले तीन दोष बिगड़ते है फिर सात रसरक्तादि धातुये बिगड़ती है इसके बाद तीन मल बिगड़ते है मलो की शुद्धी करते -करते बहुत समय लग जाता है तथा रोगी कमजोर होने से रोग ज्यादा बढ़ जाता है मलपरक कैंसर के कारण कैंसर की जगह अति संक्रमण होकर सडन और दुर्गन्ध पैदा हो जाती है इस प्रकार के कैंसर में शरीर के वातादि दोष रसादि धातुये और मल सभी विकृत हो जाते है वातादि दोष रसादि धातुये जब तक नहीं सुधरती तब तक मलो का शोधन कसे हो तब तक रोग तेज गति से बढ़ कर असाध्य हो जाता है ]