आयर्वेद[ aayurveda] और केन्सर [kensar-cancer] -1

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लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063

कैन्सर पर में यह लेख प्रारम्भ करने के साथ में यह कहना चाहता हूँ कि इसमे रिसर्च [अनुसन्धान ]करने की अत्यधिक आवश्यकता है रिसर्च [अनुसन्धान ]भी वही कर सकता है जिसकी रिसर्च [अनुसन्धान ]बुद्धि हो रिसर्च [अनुसन्धान ]भी वही कर सकता जिसमे भूख ,प्यास,अपमान ,अवहेलना सहने की ताकत हो रिसर्च [अनुसन्धान ]भी वही कर सकता जो साधन,धन,सुख की परवाह नहीं करता हो रिसर्च [अनुसन्धान ]भी वही कर सकता है जिसकी दर भटकने ,श्रम करने की शक्ति हो रिसर्च [अनुसन्धान ]भी वही कर सकता है जो परिणाम आने पर प्रसन्नता और निराश नहीं हो कम से कम आयुर्वेद के स्नातक व आध्यापक को तो यह बहुत ही जरुरी है कैंसर की बीमारी ने बहुत भारी हलचल मचा रखी है कैंसर का नाम सुनते ही रोगी की हालात ऐसी हो जाती है की पसीने छूटने लग जाते है क्योकि अवधारणा व जन मान्यताये यह हो गयी कि दुनिया में कैंसर का कोई इलाज नहीं है रोगी घबडा जाता है और मृत्यु के निकट पहुच जाता है आयुर्वेद एक वैज्ञानिक शास्त्र है परन्तु भारत में ऐलोथिक चिकित्सा के भरपूर प्रचार के कारण व देखा देखी के कारण भारत की जनता ने भी आयुर्वेद जैसे महान वैज्ञानिक चिकित्सा की अवहेलना की जबकि उसकाल में आयुर्वेद के अच्छे चिकित्सक और जडीबुटीयो के विशेषज्ञ मौजूद थे तथा भारतीय आयुर्वेद रसायन शास्त्र के ज्ञाता भी उपलब्ध थे और तो और भारतीय सन्यासियों की पुरी फौज उपलब्ध थी जो की जडीबुटीयो व भारतीय आयुर्वेद रसायन शास्त्र के विशेषज्ञ थे यहाँ तक ग्रामीण मुखिया व दादी नानी भी भारतीय आयुर्वेद की जडीबुटीयो से परिचित ही नहीं बल्कि उसका कल्प और परहेज [पच]भी अच्छी तरह से जानती थी अपार साहित्य भी उपलब्ध था जो अच्छे विद्वानों द्वारा लिखा हुवा था परन्तु भारत का जनमानस शासकीय ऐलोथिक चिकित्सा की चकाचौंध की तरफ बह गया और केसर पर आयुर्वेद पद्धति से अनुसन्धान नहीं हो पाया यानि शासकीय और सामाजिक स्तर पर रिसर्च [अनुसन्धान ]के लिए प्रोत्साहन नहीं मिलपाया हालाँकि व्यक्तिगत स्तर पर केसर पर आयुर्वेद पद्धति से रिसर्च [अनुसन्धान ]होता रहा परन्तु उसका शायद परिणाम होते हुए भी सफलता से अधूरापन रहा परिणाम यह रहा कि जनता को बहुत मूल्य चुकाना पड़ा आज फिर सारी दुनिया की निगाहे आयुर्वेद पर है परन्तु राह आज बड़ी कठिन कंटक पूर्ण है परन्तु जहा चाह वहा राह कठिन मेहनत और भारी जिद तथा हर नहीं मानने वाला वैद्य राह निकाल सकता है व्यक्तिगत रिसर्च [अनुसन्धान ]परन्तु अधूरापन व्यक्तिगत रिसर्च [अनुसन्धान ]परन्तु अधूरापन
व्यक्तिगत रिसर्च [अनुसन्धान ]अधूरापन इसलिए रहा कि-
1-एलोपैथिक चिकित्सा की तरफ जनता का जुकाव
२-एलोपैथिक चिकित्सा का शासकीय प्रश्रय
3-रोगों आयुर्वेद को अंतिम अवस्था का मिलना फिर भी लाभ
४-साधन सिमित होना
5–एलोपैथिक चिकित्सा की तुलना में आयुर्वेद हेय समझाना
६-अंग्रेज शाशको द्वारा आयुर्वेद की अवहेलना
७-प्रचार -प्रसार का आभाव
८- आर्थिक कारण
कैन्सर पर आयुर्वेद पद्धति से रिसर्च [अनुसन्धान ] कंटक पूर्ण-
उसकाल में जहा आयुर्वेद के अच्छे चिकित्सक और जडीबुटीयो के विशेषज्ञ मौजूद थे आज ढूंढने से भी मिलना बड़ी मुस्किल है उसकाल में जहा भारतीय आयुर्वेद रसायन शास्त्र के ज्ञाता भी उपलब्ध थे आज आयर्वेद के महाविद्यालयो इस विषय में भारतीय आयुर्वेद रसायन शास्त्र नाम की भी प्रायोगिकता नहीं है और तो और उसकाल में जहा भारतीय सन्यासियों की पुरी फौज उपलब्ध थी जो की जडीबुटीयो व भारतीय आयुर्वेद रसायन शास्त्र के विशेषज्ञ थे तो दूर सन्यासियों की विश्वसनीयता ही नहीं रही अच्छे सन्यासी तक पहुच पाना बड़ा मुस्किल ही नहीं बड़ा दुष्कर्य कार्य है उसकाल में जहा यहाँ तक ग्रामीण मुखिया व दादी नानी भी भारतीय आयुर्वेद की जडीबुटीयो से परिचित ही नहीं बल्कि उसका कल्प और परहेज [पच]भी अच्छी तरह से जानती थी आज वो अनभिग्य है और आयुर्वेद की जडीबुटीयो से परिचित ही नहीं बल्कि उसका कल्प और परहेज [पच]भी अच्छी तरह से जानना तो दूर आयुर्वेद की जडीबुटीयो के नाम पर बाबाजी ठललू मिलेगा उसकाल में जहा अपार साहित्य भी उपलब्ध था जो अच्छे विद्वानों द्वारा लिखा हुवा था आज पुराना साहित्य मिलना तो दूर नोशिखियो के द्वारा लिखा हुवा जो प्रमाणिक नहीं कहा जा सकता उपलब्ध है सबसे बड़ी समस्या तो यह है भारत में अब कोई श्रमिक रूप में न कोई शिष्य मिलाता और न ही सर्मिक जो कर्तव्य निष्ठां से कार्य कर सके दर असल भारत कहने को तो प्रजातंत्र है परन्तु राजावो का देश है श्रमिक यहाँ कोई नहीं बस राजा ही राजा दिखाई पड़ते है

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