लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063
गोठोडा (गले का केन्सर)
[यह लेख अभी प्रारंभिक अवस्था में है अभी इसमे कई महत्वपूर्ण संशोधन होने है ]
गले में गठोडे पड जाने पर
गल्ले में कभी कभी एक प्रकार की झिल्ली पड जाने पर प्राय: औषधियां कम लाभ करती है कंठ में गांठो के कारण थूक तक भी नहीं निगला जाता है पीड़ा होती है।कितनी ही बार तो इसके ओपरेशन के लिये डाक्टरों की शरण में जाना पडता है। व्रण जल्दी आराम नहीें होता है।
द्रोण पुष्पी के समान एक अन्य जाति की द्रौण पुष्पी होती है, उसमें प्रत्येक गांठ पर द्रोण गुड्डे से आते है पुश्प श्वेत हेाता है। द्रोणपुष्पी के प ुष्प में पत्ते होते है इसके पुष्पों में पत्ते नहीं होते । गांठ-गांठ पर गोल पुष्प लगते है, उस गांठ में द्रौण पुष्पी की तरह भीतर छोटे छोटे पुष्प होते है। पत्ते हरे होते है। यह चातुर्मास से लकर कार्तिक अगहन तक होती है । पीछे भी सूखे खडे रहते है। इसके पंचाग को चिलम में रखकर ऊपर से अग्रि रख कर धूम्रपान करने से तत्काल ककफ तथा इसककी गांठे निकल कर गोठोडा रोग शान्त हो जाता है।