आयर्वेद[ Aayurveda] और केन्सर [Kensar-Cancer] -5

आयर्वेद[ Aayurveda] और केन्सर [Kensar-Cancer] -5

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लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063

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गुदार्बुद [गुदा कैंसर- बद्धगुदोदर-rectum cancer] और आयुर्वेद

               गुदा कैंसर [गुदा कैंसर- बद्धगुदोदर-rectum cancer]आठ प्रकार के उदर रोगों में बद्धगुदोदर का नाम है मन्दाग्नि के बिना उदर रोग नहीं होता और बिना मन्दाग्नि के अर्श रोग [बबासीर]भी नहीं होता ये दोनों रोग का गुदा[rectum] के साथ पूरा संबध है गुदा कैंसर [-rectum cancer]  में अर्श रोग [बबासीर]और बद्धगुदोदर दोनों कारण है आंतो के अन्दर आम और दोष तथा अन्य चिकने पदार्थ और दोष इकठे होकर श्लेष्मिक कला के ऊपर चिपक जाते है जिससे मल प्रवृति करने में बड़ा कष्ट होता है उदर ह्रदय नाभि में शूल व भारीपन पैदा करता है बद्धगुदोदर गुदा से लेकर उन्डूक तक फैलता है यह बड़ी आंत करीब आठ फुट लम्बी होती है बड़ी आंत का पोलापन जब छोटा होता जाता है तब उन्डूक [ अपेडिक्स]जहा छोटी आंत का मिलान स्थल पर शक्त शूल होने लगता है बड़ी आंत का पोलापन में आम और दोष तथा अन्य चिकने पदार्थ और दोष इकठे होकर श्लेष्मिक कला के ऊपर चिपक कर दोष और मल के जमाव का स्तर सा बन जो जो दस्तावर ओषधियो से बाहर नहीं निकल पाता अर्श रोगी को बद्धगुदोदर आसानी से हो जाता है क्योकि अर्श गुदा में होता है जिससे गुद नलिका सिकुड़ओता है जाती है इसलिए मल और दोषों को पूर्ण तया बाहर निकलने नहीं देती इसलिए मल और बिगड़े दोषों को पूर्णतया बाहर निकलने में कुछ असमर्थ सी होती जाती है वही मल और बिगड़े दोषों प्रतिलोम हो जाकर बृहदान्त्र को प्रभावित करती है बद्धगुदोदर और अर्श में उदावर्त रोग अवश्य होता है गुद नलिका के दूसरी व तीसरी वल्ली में अर्श होता है तब बद्धगुदोदर अवश्य होता है ऐसे अर्श को शास्त्रकारो ने असाध्य बताया है यह रोग दश से बीस वर्ष के अंतराल में बनने का समय लग जाता है रोग असाध्यता प्राप्त कर लेता है आचार्य चरक कहते है की-

सहजानि त्रिदोषानि यानि चाभन्तराम बलिम !

जायन्ते अर्शासि संश्रित्य तान्य साध्यानि निदिर्शेत !![चरक ]

जो अर्श त्रिदोषज है जन्म के साथ है जो गुद नलिका के तीसरी वल्ली में उत्पन्न होता है वह असाध्य है इस स्थिति बड़ी आंत के स्थानं में भी परिवर्तन हो जाता है आचार्य चरक कहते है की-

तेषाम प्रशामने यवमने यवमाशु कुर्याद्विचक्षण;!

तान्याशु हि गुद बद्ध्वा कर्युर्बद्धगुदोदरम !!

साध्य रोगों का भी तत्काल इलाज करना चाहिए यदि जल्द इलाज नहीं हुवा हो तो अर्श गुद नलिका को रोककर बहुत जल्दी बद्धगुदोदर रोग बना देता है गुदा कैंसर के लक्षण
1-तृषा
2-दाह
3-ज्वर
4-मुखशोष
5-तालु शोष
6-जंघा में दर्द
7- खासी
8 श्वास
-9-दोर्बल्य
10- अरोचक
11- अपच
12-मलामूत्रावरोध
13-अफरा
14-वमन
15-मस्तकशूल
16-ह्रदय शूल
17-नाभि शूल
18-उण्डुक शोथ -गाय की पूछ जैसी आकृति व उतना बड़ा शोथ
19-बध्दगुदोदर रोग
आचार्य चरक कहते है

पक्षदव्दव्दगुदं तूर्ध्व सर्वं जातोदकं तथा!

प्रायो भवत्यभावाय छिद्रान्त्रम चोदरं नृणाम !![चरक]

बध्दगुदोदर व परिश्वायुदर [छिद्रोदर]यह दोनों कैंसर 15 दिन में रोगी की जीवन रेखा समाप्त कर देते है तथा जिस उदर रोग में पानी प्रगट हो जाता है वे तमाम प्रकार के उदर रोग रोगी को मार डालता है गुदा कैंसर के लक्षण
1-तृषा
2-दाह
3-ज्वर
4-मुखशोष
5-तालु शोष
6-जंघा में दर्द
7- खासी
8 श्वास
-9-दोर्बल्य
10- अरोचक
11- अपच
12-मलामूत्रावरोध
13-अफरा
14-वमन
15-मस्तकशूल
16-ह्रदय शूल
17-नाभि शूल
18-उण्डुक शोथ -गाय की पूछ जैसी आकृति व उतना बड़ा शोथ
19-बध्दगुदोदर रोग
आचार्य चरक कहते है
पक्षदव्दव्दगुदं तूर्ध्व सर्वं जातोदकं तथा!

प्रायो भवत्यभावाय छिद्रान्त्रम चोदरं नृणाम !![चरक]

बध्दगुदोदर व परिश्वायुदर [छिद्रोदर]यह दोनों कैंसर 15 दिन में रोगी की जीवन रेखा समाप्त कर देते है तथा जिस उदर रोग में पानी प्रगट हो जाता है वे तमाम प्रकार के उदर रोग रोगी को मार डालता है
उपद्रव-
1-जलोदर
2-बध्दगुदोदर
3-इसमे रोगी की आखे सूज जाती है
4-उपस्थ टेढ़ी हो जाती है
5-उदर त्वचा पच पची और पतली हो जाती है
6-बल ,रुधिर ,मांस का क्षय हो जाता है
7-जाठराग्नि बिलकुल मंद पड जाती है
गुदार्बुद में शल्य क्रिया [ऑपरेशन-शश्चद्गह्म्ड्डह्लद्बशठ्ठ]सफल नहीं है आज तक मेरे पास आये गुदार्बुद रोगी का किसी भी डाक्टर ने शल्य क्रिया [ऑपरेशन-शश्चद्गह्म्ड्डह्लद्बशठ्ठ]नहीं की हा रोगी की थोड़ी उम्र बढ़ाने के लिए मल विसर्जन हेतु शल्य क्रिया [ऑपरेशन-शश्चद्गह्म्ड्डह्लद्बशठ्ठ]दूसरा रस्ता अवश्य बना देते है अत:बध्दगुदोदर जैसे उपद्रव होने पर रोगी मरता शीघ्र नहीं कुछ दिन आयु बढ़ जाती है
चिकित्सा –
1-गुदार्बुद की सबसे श्रेष्ठ चिकित्सा पच्च कर्म का बस्ति कर्म है बिना बस्ति के गुदार्बुद ठीक नहीं होता निरुह व अनुवासन बस्ति गुदार्बुद का पता चलते ही समय समय पर महीनो या वर्षो तक रोगी जिन्दा रहने या बिलकुल ठीक होने तक देते रहने से बिलकुल असाध्य सा गुदार्बुद बिलकुल ठीक हो सकता है
बस्ति कर्म परिचय –
2-अर्बुदारि गोमूत्रार्क
3- तक्रामृत पेय
4-अर्बुद विध्वन्षक घृत
5-अर्बुद कुठार चूर्ण

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