अमर बलिदानी अवधबिहारी

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लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063

अमर बलिदानी अवधबिहारी
[जन्म दिवस 14 नवम्बर, 1889-बलिदान दिवस-८ मई ,1915] मातृभूमि की सेवा के लिए व्यक्ति की शिक्षा, आर्थिक स्थिति या अवस्था कोई अर्थ नहीं रखती। दिल्लीवासी क्रांतिवीर अवधबिहारी ने केवल 25 वर्ष की अल्पायु में ही अपना शीश मां भारती के चरणों में समर्पित कर दिया। अवधबिहारी का जन्म चांदनी चैक, दिल्ली के मोहल्ले कच्चा कटरा में 14 नवम्बर, 1889 को हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्दलाल श्रीवास्तव जल्दी ही स्वर्ग सिधार गये। अब परिवार में अवधबिहारी, उनकी मां तथा एक बहिन रह गयी। निर्धनता के कारण प्राय: इन्हें भरपेट रोटी भी नहीं मिल पाती थी; पर अवधबिहारी बहुत मेधावी थे। गणित में सदा उनके सौ प्रतिशत नंबर आते थे। उन्होंने सब परीक्षाएं प्रथम श्रेणी और कक्षा में प्रथम आकर उत्तीर्ण कीं। अवध बिहारी बड़े होनहार नोजवान थे छात्रवृत्ति और ट्यूशन के बल पर अवधबिहारी ने सेंट स्टीफेंस कॉलिज से 1908 में प्रथम श्रेणी में स्वर्ण पदक लेकर बी.ए किया। उनकी रुचि पढ़ाने में थी, अत: वे लाहौर गये और सेंट्रल टेऊनिंग कॉलिज से बी.टी की परीक्षा उत्तीर्ण की। टेऊनिंग कॉलिज के एक अंग्रेज अध्यापक ने इनकी प्रतिभा और कार्यक्षमता देखकर कहा था कि ऐसे बुद्धिजीवी युवकों से अंग्रेजी शिक्षा और सभ्यता के प्रसार में बहुत सहायता मिल सकती है; पर उन्हें क्या पता था कि वह युवक आगे चलकर ब्रिटिश शासन की जड़ें हिलाने में ही लग जाएगा। शिक्षा पूरी कर अवधबिहारी दिल्ली में संस्कृत हाईस्कूल में अध्यापक हो गये; पर वह सरकारी विद्यालय स्वाधीनता के उनके कार्य में बाधक था। अत: उसे छोड़कर वे लाला हनुमन्त सहाय द्वारा स्थापित नेशनल हाई स्कूल में पढ़ाने लगे। दिल्ली में उनकी मित्रता मास्टर अमीरचंद आदि क्रांतिकारियों से हुई, जो बम-गोली के माध्यम से अंग्रेजों को देश से भगाना चाहते थे। 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग की शोभायात्रा में इन्होंने एक भीषण बम फेंका। वायसराय हाथी पर बैठा था। निशाना चूक जाने से वह मरा तो नहीं; पर बम से उसके कंधे, दायें नितम्ब और गर्दन में भारी घाव हो गये। न्यायालय में अवधबिहारी पर यह आरोप लगाया गया कि बम में प्रयुक्त टोपी उन्होंने ही बसंतकुमार के साथ मिलकर लगायी थी। शासन ने इसकी जानकारी देने वाले को एक लाख रुपये के पुरस्कार की घोषणा की। शासन ने कुछ लोगों को पकड़ा, जिनमें से दीनानाथ के मुखबिर बन जाने से इस विस्फोट में शामिल सभी क्रांतिकारी पकड़े गये। न्यायालय में अवधबिहारी पर यह आरोप लगाया गया कि बम में प्रयुक्त टोपी उन्होंने ही बसंतकुमार के साथ मिलकर लगायी थी। उन दिनों देश में अनेक विस्फोट हुए थे। अवधबिहारी को उनमें भी शामिल दिखाया गया। दिल्ली बम्ब कांड के बाद अवध बिहारी वापिस लाहोर आ गये और बंगाल से लाहोर स्थान्तरित अंग्रेज अधिकारी मि.गोर्डन बड़ा क्रूर व अत्याचारी था अवध बिहारी ने 17 मई 1913 को उसकी हत्या करने का असफल प्रयास किया 19 फरवरी 2014 अवध बिहारी को गिरफ्तार कर लिया गया सजा सुनाते हुए न्यायाधीश ने लिखा – अवधबिहारी जैसा शिक्षित और मेधावी युवक किसी भी जाति का गौरव हो सकता है। यह साधारण व्यक्ति से हजार दर्जे ऊंचा है। इसे फांसी की सजा देते हुए हमें दुख हो रहा है। जज ने आपके बारे में लिखा है कि-ड्ड2ड्डस्रद्ध ड्ढद्गद्धड्डह्म्द्ब द्बह्य ड्ड 4शह्वठ्ठद्दद्वड्डठ्ठ शद्घ द्दह्म्द्गड्डह्ल द्बठ्ठह्लद्गद्यद्यद्गष्ह्लह्वड्डद्य ड्डड्ढद्बद्यद्बह्ल4. द्धद्ग ह्यह्लशशस्र ह्यद्गष्शठ्ठस्र द्बठ्ठ ह्लद्धड्ड द्घद्बह्यह्ल शद्घ ह्लद्धड्ड श्चठ्ठठ्ठद्भड्डड्ढ ह्वठ्ठद्ब1द्गह्म्ह्यद्बह्ल4 ड्ढ.ह्ल.द्ग&ड्डद्वद्बठ्ठड्डह्लद्बशठ्ठ इनके खिलाफ या आरोप भी साबित हुवा है कि आपके साथ मास्टर अमीर चंद जी के साथ बहुत प्रेम है कि वे साजिस के सदस्य थे और प्रेम का सबूत यह है की मास्टर अमीर चंद जी ने इनको लिखा है -स्रद्गद्ग4ड्डह्म् ड्ड2ड्डस्रद्धड्डद्भद्ब यानि प्यारे अवध जी 11 मई, 1915 इनकी फांसी की तिथि निर्धारित की गयी। फांसी से पूर्व इनकी अंतिम इच्छा पूछी गयी, तो इन्होंने कहा कि अंग्रेजी साम्राज्य का नाश हो। जेल अधिकारी ने कहा कि जीवन की इस अंतिम वेला में तो शांति रखो। अवधबिहारी ने कहा, ”कैसी शांति ? मैं तो चाहता हूं भयंकर अशांति फैले, जिसमें यह विदेशी शासन और भारत की गुलामी भस्म हो जाए। क्रांति की आग से में तो चाहता हूँ आग भड़के उसमे तुम भी जलो हम भी जले हमारी गुलामी भी जले भारत कुंदन होकर निकले। हमारे जैसे हजार-दो हजार लोग नष्ट भी हो जाएंगे, तो क्या ?ÓÓ यह कहकर उन्होंने फंदा गले में डाला और वन्दे मातरम् कहकर रस्सी पर झूल गये। उस कारागार और फांसीघर के स्थान पर आजकल मौलाना आजाद मैडिकल कॉलिज बना है। कितने दु:ख की बात है फासी पर चढ़ने वालो के ये मैडिकल कॉलिज नाम होना चाहिए खेदास्पदम परमं आप पर कई लिबर्टी पर्चे लिखने का आरोप था आपको उत्तरप्रदेश और पन्जाब की पार्टी का प्रमुख नियुक्त किया गया भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी व बंदी जीवन पुस्तक के लेखक शचीन्द्र नाथ सान्याल ने आपकी बड़ी तारीफ की है कहते है की आप बड़े जिन्दा दिल आदमी थे और गुनगुनाते रहते थे –
अहसान नाखुदा का उठाये मेरी बला ,
किस्ती खुदा पर छोड़ दू और लंगर को तोड दू !
८ मई, 1915 अम्बाला सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया

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