लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063
अद्भुत क्रांतिवीर -जोरावर सिंह बारहट
जन्म- 12 सितम्बर 1883, निर्वाण-1939
जोरावर सिंह जी पर अंग्रेज सरकार ने इनाम घोषित किया पर ये अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आये और एक सन्यासी की तरह फरार रहते हुए गांव गांव जाकर धरम और देशभक्ति का जन जागरण किया , पर अंग्रेजों से छिपने के दौरान भारी निमोनिया और इलाज न करा पाने से 1939 में कोटा में शहीद हो गए
जोरावरसिंह बारहठ एक क्रान्तिकारी थे जिनका जन्म 12 सितम्बर 1883 को उदयपुर में हुआ था। इन्होंने 12 दिसम्बर 1911 को दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंक कर प्रसिद्धि पाई। कोटा की अतरालिया हवेली में 1939 में इनका देहान्त हो गया।ठाकुर केसरी सिंह राजस्थान के प्रमुख क्रान्तिकारियों में से एक थे। इनका जन्म 1892 ई. में हुआ था। ठाकुर केसरी सिंह के उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा पंजाब के क्रान्तिकारियों से घनिष्ठ सम्बन्ध थे राजनीति में वे इटली के राष्ट्रपिता मैजिनी को अपना गुरु मानते थे मैजिनी की जीवनी वीर सावरकर ने लन्दन में पढ़ते समय मराठी में लिख कर गुप्त रूप से लोकमान्य तिलक को भेजी थी क्योंकि उस समय मैजिनी की जीवनीपुस्तक पर ब्रिटिश साम्राज्य ने पाबन्दी लगा रखी थी केसरी सिंह जी ने इस मराठी पुस्तक का हिंदी अनुवाद किया था पूरा परिवार क्रांति की बलिवेदी पर समर्पित केसरी सिंह जी को जब सुचना मिली की रास बिहारी बोस भारत में सशस्त्र क्रांति की योजना बना रहे हैं तो राजस्थान में क्रांति का कार्य उन्होंने स्वयं संभाला और अपने भाई जोरावर सिंह, पुत्र प्रताप सिंह और जामाता ईश्वर दस असिया को रास बिहारी बोस बाबु के पास भेजा7केसरी जी के भाई जोरावर सिंह बारहट और पुत्र प्रताप सिंह बारहट ने रास बिहारी बोस के के साथ लार्ड हार्डिंग की सवारी पर बम फेंकने के कार्य में भाग लिया , जोरावर सिंह जी ने रास बिहारी घोष के साथ मिलकर दिल्ली के चांदनी चौक में लार्ड हार्डिंग पर बम फेंका था जिसमे हार्डिंग घायल हो गया था तथा मृत्यु से बाल-बाल बचा था और गांधीजी ने उसे बधाई का तार भेजा था ,इस हमले में वायसराय तो बच गया पर उसका ए.डी.सी. मारा गया जोरावर सिंह जी पर अंग्रेज सरकार ने इनाम घोषित किया पर ये अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आये और एक सन्यासी की तरह फरार रहते हुए गांव गांव जाकर धरम और देशभक्ति का जन जागरण किया , पर अंग्रेजों से छिपने के दौरान भारी निमोनिया और इलाज न करा पाने से 1939 में कोटा में शहीद हो गए केसरी जी के पुत्र प्रताप सिंह जो बारहट 1917 में बनारस षड़यंत्र अभियोग में पकडे गए और उन्हें 5 वर्ष के लिए बरेली सेंट्रल जेल में बंद किया गया था 7 जेल में भयानक यातनाएं दी गयी ,प्रलोभन दिए गए कि वह पुरे कार्य का भेद बता दे तो उसके पिता को जेल से मुक्त कर देंगे , उनकी जागीर लौटा दी जायेगी , उसके चाचा पर से वारंट हटा लिया जायेगा पर वीर प्रताप ने अपने क्रन्तिकारी साथियों के बारे में कुछ नहीं बताया उन्होंने मरना स्वीकार कर लिया पर राष्ट्र के साथ गद्दारी नहीं की जब उन्हें उनकी माँ की दशा के बारे में बताया गया तो वीर प्रताप ने कहा था = मेरी माँ रोती है तो रोने दो , मैं अपनी माँ को हंसाने के लिए हजारों माताओं को नहीं रुलाना चाहता अंग्रेज अधिकारी क्लीवलैंड ने कहा था की =इतना पत्थर दिल इंसान मैंने कहीं नहीं देखा ” 7आखिर अंग्रेज सरकार की अमानुषिक यातनाओं से 27 मई 1918 को मात्र 22 वर्ष की आयु में प्रताप सिंह शहीद हो गए 7