लेखक-वैद्य पवन कुमार सुरोलिया बी.ए.एम.एस [आयुर्वेदाचार्य ]संपर्क सूत्र -9829567063
प्रेरणा पुरुष : मास्टर अमीर चंद
[जन्म -1869 बलिदान दिवस ८ -मई-1915]
देशप्रेम की भावना व्यक्ति को कभी काले पानी जैसी भयानक जेल में यंत्रणाओं की भट्टी में झोंक देती है, तो कभी वह उसे फांसी के तख्ते पर खड़ा कर देती है। इस परिणाम को जानते हुए भी स्वाधीनता समर के दीवाने एक के बाद एक बलिवेदी पर अपने मस्तक चढ़ाते रहे। ऐसे ही पे्ररणा पुरुष थे मास्टर अमीरचंद, मास्टर अमीरचंद भारत की स्वतंत्रता-संग्राम के क्रांतिकारी थे। अमीर चंद का जन्म 1869 में हैदराबाद की विधानसभा के सेक्रेटरी के घर दिल्ली के वैश्य अग्रवाल परिवार में हुआ था। इनके जन्म की ठीक तिथि मालूम नहीं है। उनके मन में देश भक्ति की मान्यता इतनी प्रबल थी कि स्वदेशी आंदोलन के दौरान हैदराबाद के बाजार में उन्होंने स्वदेशी स्टोर खोला जहां वह देशभक्तों की तस्वीरें तथा क्रांतिकारी साहित्य बेचते थे। 1919 में दिल्ली में भी स्वदेशी प्रदर्शनी लगाई।मास्टर अमीरचंद को स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ता . प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता , लाला हर दयाल , के साथ संपर्क क्रांतिकारी आंदोलन मेें लाये तब लाला लाजपतराय ने हरदयाल जी पर भारत छोड़ने का दबाव डाला “कहीं अज्ञातवास करो।” अपने संपर्कित युवकों का सम्पर्क दिल्ली के मास्टर अमीरचंद से करा हरदयाल जी पेरिस (फ्रांस) पहुंच गये, जहां वे मादाम कामा, पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा और सरदार सिंह राणा से मिलते रहे। मास्टर अमीरचंद जिनके कंधों पर 1908-09 में सम्पूर्ण उत्तर भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को सुगठित करने का महत्वपूर्ण भार डाला गया था। मास्टर अमीरचंद की शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में ही हुई थी। इसलिए वे दिल्ली के चप्पे-चप्पे से परिचित थे। वे संस्कृत, हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे। अमीर चन्द दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज के विद्यार्थी थे सेंट स्टीफन कॉलेज से बी.ए व्यवसाय से वे एक अध्यापक थे। अमीर चन्द सेंट स्टीफन कालेज के अध्यापक थे उनके मन में देश भक्ति की मान्यता इतनी प्रबल थी कि अतत: नोकरी से त्याग पत्र दे दिया बाद वे वहां ईसाइयों द्वारा संचालित कैम्ब्रिज मिशन हाई स्कूल में अध्यापक हो गये। पर अध्यापन कार्य तो एक बहाना था। उनका मन तो देश की स्वाधीनता के लिए ही तड़पता रहता था। बंग-भंग के समय जब देश में स्वदेशी आंदोलन की लहर चली, तो वे उसमें कूद पड़े। कैम्ब्रिज मिशन स्कूल वालों को उनकी यह सक्रियता अच्छी नहीं लगी। अत: उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इस पर वे नेशनल हाईस्कूल में अध्यापक हो गये। इसकी स्थापना दिल्ली के एक सम्पन्न व्यापारी लाला हनुमन्त सहाय ने अपने घर में ही की थी। मास्टर अमीरचंद पत्रकार भी थे उन्होंने आजादी के लिए आकाश नामक पत्र भी निकाला इस पत्र में हर एक एक शब्द अंग्रेजो के खिलाफ थे और इतने साहसी थे कि अपने लेख पूर्व ही पुलिस स्टेशन पर पहुंचा देते थे 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग की सवारी पर बम फेंका गया। वायसराय तो बच गया, पर उसके अंगरक्षक मारे गये। इसके बाद ढाका, मैमनसिंह और लाहौर में भी विस्फोट हुए। इससे सरकार के कान खड़े हो गये। कोलकाता, दिल्ली तथा पंजाब के अनेक स्थानों पर मारे गये छापों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आग उगलने वाले पत्रक, पिस्तौल व कारतूस आदि पकड़े गये। मास्टर अमीरचंद, अवधबिहारी और दीनानाथ इस बम विस्फोट के सूत्रधारों में थे। बरामद कागजों में उनके नाम मिलेे। अत: इन्हें पकड़ लिया गया। दीनानाथ पुलिस की मार नहीं झेल सके और क्षमा मांगकर सरकारी मुखबिर बन गये। उनके बताने पर भाई बालमुकुन्द भी गिरफ्तार कर लिये गये।मास्टर अमीरचंद पर ‘लिबर्टीÓ नामक उग्र पर्चा लिखने का आरोप था, जो वायसराय पर बम फेंकते समय बांटा गया था। उसमें लिखा था – हम संख्या में इतने हैं कि उनकी तोपें छीन सकते हैं। ये सड़ी सुधार योजनाएं किसी काम नहीं आएंगी। एक बार तख्ता पलट दो और फिरंगी को मारकर खत्म कर दो…। यह पर्चा उन पर अभियोग चलाने के लिए पर्याप्त था। यद्यपि दिल्ली के अनेक प्रतिष्ठित नागरिकों ने उन्हें निर्दोष बताया। वकीलों ने उनके पक्ष में जोरदार बहस की; पर बहरा शासन कुछ सुनने को तैयार नहीं था।जज भी अपने निर्णय में मास्टर जी की सुहृदयता का वर्णना करना न भूला। उसने कहा था। यह स्मरण रखना चाहिए कि अमीरचंद्र की तरह देशभक्त यदि उनकी किसी विशेष बात के लिए सनक निकाल दी जाए तो वे बहुत ही निर्दोष आदर योग्य प्रतिष्ठित व्यक्ति होते हैं। मास्टर अमीरचंद तो बलिदानी बाना पहन ही चुके थे। उन्हें मृत्यु से कोई भय नहीं था। उन्हें कष्ट था तो इस बात का कि उनके साथी दीनानाथ ने मुखबिरी की; पर अभी उन्हें और अधिक दुख देखने थे। उनका दत्तक पुत्र सुल्तानचंद जब उनके विरुद्ध गवाही देने के लिए न्यायालय में खड़ा हुआ, तो मास्टर अमीरचंद का दिल टूट गया। उन्होंने भरी आंखों से अपना मुंह फेर लिया। 8 मई, , 1915 को क्रांतिवीरों के प्रेरणा पुंज मास्टर अमीरचंद को दिल्ली में ही फांसी दे दी गयी। उनके साथ फांसी का फंदा चूमने वाले तीन अन्य क्रांतिकारी थे – अवधबिहारी, भाई बालमुकुन्द और बसंतकुमार विश्वास।